भोपाल। प्रदेश में इस बार सरकार समर्थन मूल्य पर सरसों का उपार्जन करने से बच गई है। सरकार ने अभी तक प्रदेश में किसी भी उपार्जन केंद्र पर सरसों का एक दाना भी नहीं खरीदा है। क्योंकि खुले बाजार में किसानों को समर्थन मूल्य से ज्यादा के भाव मिल रहे हैं। इस वजह से किसान सरकार को फसल बेचने के लिए नहीं आ रहे है। प्रदेश में ग्वालियर-चंबल में सबसे ज्यादा सरसों का उत्पादन होता है। इस बार यहां मंडियों में किसानों को समर्थन मूल्य से ज्यादा कीमत मिल रही है। जिसकी वजह इस बार प्रदेश के बाहर से व्यापारी आए हैं।
हालांकि सरकार ने सरसों के उपार्जन की तैयारी कर ली थी। जिसके तहत समर्थन मूल्य पर सरसों की खरीदी का समय चल रहा है, लेकिन ज्यादा कीमत मिलने की वजह से किसान केंद्र पर नहीं आ रहे हैं। शिवपुरी, श्योपुर, भिंड, मुरैना और ग्वालियर की मंडियों में सरसों की खरीदी 5 हजार प्रति क्विंटल से ज्यादा पर हो रही है। जबकि सरसों का समर्थन मूल्य 4650 रुपए है। मंडियों में सबसे ज्यादा खरीदी सरसों की हो रही है। किसानों का कहना है कि जब भाव व्यापारी अच्छा दे रहा है, पैसा भी तत्काल मिल रहा है तो कोई क्यों सरकारी केंद्र पर जाएगा। दूसरा केंद्र पर फसल बेचने के लिए 100 झंझटों का सामना करो। हालांकि सरसों के लिए लाखों किसानों ने पंजीयन कराया है।
उपार्जन केंद्रों पर सन्नाटा
ग्वालियर-चंबल के जिलों में सरसों के लिए खोले गए उपार्जन केंद्रों पर किसान नहीं पहुंच रहे हैं। गेहूं बेचने के लिए किसान पहुंच रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र में भी किसान उपार्जन केंद्र छोड़कर मंडियों में सरसों बेचने के लिए जा रहे हैं। हालांकि सरकार की ओर से सरसों के लिए किसानों को मैसेज भेजे जा रहे हैं। सरसों का उपार्जन नहीं होने से सरकार को इस बार बड़ी राहत है। क्योंकि उपार्जन केंद्रों पर हर साल गड़बड़ी की शिकायतें आती है। इस बार इन झंझटों से मुक्ति मिल गई है।