दतिया की रेखा को कड़कनाथ के 15 चूजों ने कर दिया मालामाल

आज 70 मुर्गे की मालकिन, एक की कीमत ढाई हजार रुपए

vinod pandey
दतिया, जिले के झडिय़ां गांव की रेखा महरोली ने जहां एक ओर कोरोना काल में कड़कनाथ और अंग्रेजी सूकर बेचकर लोगों का इम्युनिटी पावर को बढ़ाया। दूसरी ओर खुद के परिवार को भी आर्थिक मजबूती दी। कुल 15 कड़कनाथ के चूजों से 1 साल पहले अपने व्यवसाय की शुरुआत की थी। इसके बाद उनका यह व्यवसाय फलीभूत होता गया। उन्होंने अंग्रेजी सूकर का भी पालन शुरू कर दिया। एक ओर जहां लोगों का इम्युनिटी सिस्टम मजबूत होने लगा। वहीं रेखा के परिवार को भी आर्थिक मजबूती मिलती चली गई। यह मामला झडिय़ा का है, जहां 40 वर्षीय रेखा महरोलिया ने एक सरकारी मदद से कड़कनाथ के कुछ चूजे लिए और उनकी देखभाल की। इसके लिए एक स्वयं सहायता समूह ने भी उनकी मदद की थी। देखते ही देखते कड़कनाथ का कुनबा 60 से 70 मुर्गे मुर्गियों तक पहुंच गया। कोरोना काल में कड़कनाथ के मुर्गे की मांग इम्युनिटी बढ़ाने में सौ फीसद कारगर होने के कारण बढ़ गई। इसके चलते रेखा का एक-एक कड़कनाथ मुर्गा दो से ढाई हजार रुपए में बिकने लगा। यहां तक कि लोग उनके गांव व घर तक भी पहुंचने लगे। इससे उत्साहित होकर उसको कृषि विज्ञान केंद्र के कुछ वैज्ञानिकों ने सलाह दी कि अंग्रेजी सूकर को भी पालने से और भी ज्यादा लाभ मिलेगा। अंग्रेजी सूकर की मांग विदेशों व पांच सितारा होटलों में भी काफी है। बस फिर क्या था। रेखा ने अंग्रेजी सूकर भी पालना शुरू कर दिया। अब वह इस इलाके में इम्युनिटी बढ़ाने का ब्रांड बन गई। हर कोई बड़ा ग्राहक इम्युनिटी का मुकाम ढूंढते हुए रेखा के यहां पहुंचने लगा है। कड़कनाथ और अंग्रेजी सूकर खरीदने वाले यहां बने रहते हैं। हाल ही में उसने एक अंग्रेजी सूकर एक प्रसिद्ध होटल के लिए 18 हजार में बेचा है।

बढ़ाना चाहती हैं सूकर का कुनबा

रेखा महोरोलिया बताती हैं कि मुर्गे मुर्गियों की कड़कनाथ प्रजाति तो उसके यहां बढिय़ा से फलीभूत हो रही है। इसके पहले वह दूसरों के खेतों में मजदूरी करने जाती थीं। इस काम के बाद अब वह प्रतिमाह 10 से 15 हजार रुपए कमा रही है। इस आय में से खुद के परिवार व अंग्रेजी सूकर पालने में खर्च हो जाते हैं। यदि उसे दो लाख रु. तक के लोन की मदद मिल जाए, तो अंग्रेजी सूकर के लिए भी एक बड़ा कुनबा बनवाकर उस योजना को भी सफल कर सकती हैं। अभी गांव तक अंग्रेजी सूकर के खरीदार पहुंच रहे हैं, पर वह उनकी आपूर्ति नहीं कर पा रही है, क्योंकि अंग्रेजी सूकर की संख्या काफी कम है।

इनका कहना है
रेखा व उसके पति को प्रारंभिक तौर पर कुछ कड़कनाथ के कुछ चूजे दिलवाए गए थे, जो बेहतर पालन पोषण से कड़कनाथ प्रजाति खूब फलफूल गई और इन कड़कनाथ की लोगों में भी खूब डिमांड रही। अंग्रेजी सूकर प्रोजेक्ट के लिए भी व्यवस्था की जा रही है।
डॉ. अजय अहिरवार, पशु चिकित्सक, दतिया

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