भोपाल। सरकार द्वारा किसानों की आय दोगुनी करने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रहीं हैं। वहीं किसान भी परंपरागत खेती को छोड़कर ज्यादा फायदा देने वाली फसल की खेती की तरफ मुड़ रहे हैं। ऐसे में किसानों के लिए औषधीय फसल सतावर की खेती आर्थिक उन्नति का एक अच्छा विकल्प बन सकती है।
खेती के लिए जुलाई से लेकर सितंबर तक का महीना बेहतर
सतावर की खेती के लिए जुलाई से लेकर सितंबर तक का महीना आपके लिए बेहतर विकल्प हो सकता है। बाज़ार में अच्छे भाव से बिकने वाले सतावर की रोपाई इन्हीं महीनों में की जाती है। यह एक औषधीय जड़ी बूटी है और इसकी 500 टन जड़ों का प्रयोग भारत में हर साल दवाइयों के उत्पादन में किया जाता है। शतावरी से तैयार दवाइयों का प्रयोग गैस्ट्रिक अल्सर, अपच और तंत्रिका संबंधी विकारों के इलाज के लिए किया जाता है। सतावर की खेती की सबसे अच्छी बात यह होती है कि इसकी डिमांड राष्ट्रीय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार तक होती है। ऐसे में फसल को अच्छी कीमत पर बेचने की समस्या का सामना किसानों को नहीं करना पड़ता है।
कैसे और कब करें रोपनी
सतावर की खेती करने वाले किसानों और कृषि विशेषज्ञों के अनुसार सतावर की रोपाई जुलाई से सितंबर माह तक की जाती है। इसकी रोपनी जड़ या बीजों द्वारा की जाती है। बीज की तुलना में इसके जड़ों को अधिक श्रेष्ठ माना जाता है। इसकी रोपाई के लिए मिट्टी को 15 सेमी. की गहराई तक अच्छी तरह खोदा जाता है, क्यारी से क्यारी और पौधे से पौधे की दूरी दो फीट होनी चाहिए। फसल 18 महीने में तैयार हो जाती है, लेकिन पूरी तरह विकसित होने तथा कंद के इस्तेमाल लायक होने में कुल 3 वर्षोंं का समय लगता है।
बलुई दोमट मिट्टी को सबसे उपयुक्त
इसकी खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी को सबसे उपयुक्त माना जाता है। शतावर के पौधों को अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है। शुरुआत में सप्ताह में एक बार और जब पौधे बड़े हो जाएं तो महीने में एक बार हल्की सिंचाई करने की आवश्यकता पड़ती है। गौर करने वो बात यह है कि पौधा रोपण के बाद जब पौधे पीले पडऩे लगे, तो इसकी जड़ों की खुदाई कर लेनी चाहिए।
लागत कम मुनाफा ज्यादा
किसानों को प्रति एकड़ 350 क्विंटल गिली जड़ें प्राप्त होती हैं, जो सूखने के बाद 35 से 50 क्विंटल ही रह जाती हैं। हालांकि सतावर की खेती में प्रति एकड़ 80 हजार से 1 लाख रूपए की लागत आती है। मुनाफा प्रति एकड़ 5 लाख रुपए तक का हो जाता है।
सतावरी की प्रमुख किस्में
सतावरी, एस्पारागुस रेसेमोसस: यह किस्म अफ्रीका, चीन, श्री लंका, भारत और हिमालय में पायी जाती है। पौधे की ऊंचाई 1-3 मीटर होती है। फूल 3 सैं.मी. लंबे होते और इसके फूल का बाहरी भाग 3 मि.मी. लंबा होता है।
सतावरी, एस्पारागुस सारमंटोसा लिन: यह किस्म सूदरलैंड, बुरशैल और दक्षिण अफ्रीका में पायी जाती है। इस पौधे की ऊंचाई 2-4 मीटर लंबी होती है और फूल का बाहरी भाग 1 इंच लंबा होता है।
बीज की मात्रा: अधिक पैदावार के लिए, 400-600 ग्राम बीजों का प्रति एकड़ में प्रयोग करें। बीज का उपचार: फसल को मिट्टी से होने वाले कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए, बिजाई से पहले बीजों को गाय के मूत्र में 24 घंटे के लिए डाल कर उपचार करें। उपचार के बाद बीज नर्सरी बैड में बोये जाते हैं। बीमारियां और रोकथाम: कुंगी: यह बीमारी प्यूचीनिया एस्पारगी के कारण होती है। इस बीमारी से पत्तों पर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं जिसके परिणाम स्वरूप पत्ते सूख जाते हैं।
सतावर के फायदे
तनाव कम करना: सतावर में एडाप्टोजेनिक गुण होते हैं, जो शरीर को तनाव से निपटने में मदद करते हैं।
पाचन में सुधार: सतावर पाचन एंजाइमों की गतिविधि को बढ़ाकर पाचन में सुधार करता है।
हार्मोनल संतुलन: सतावर महिलाओं और पुरुषों दोनों में हार्मोनल संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
मासिक धर्म की समस्याएं: सतावर मासिक धर्म के दौरान ऐंठन, अनियमितता और अत्यधिक रक्तस्राव को नियंत्रित करने में मदद करता है।
स्तनपान: सतावर स्तनपान कराने वाली माताओं में दूध उत्पादन को बढ़ाने में मदद करता है।
प्रजनन क्षमता: सतावर पुरुषों और महिलाओं दोनों में प्रजनन क्षमता में सुधार करने में मदद करता है।
अन्य लाभ: सतावर में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं जो शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं और कुछ प्रकार के कैंसर के खतरे को कम करने में भी सहायक हो सकता है।