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कैसे करें नकली और मिलावटी उर्वरक की पहचान, जानिए क्या बता रहे हैं विशेषज्ञ

> उमेश कुमार
> रोबिन कुमार  
> प्रगति पांडेय
>  रोहित कुमार जायसवाल 
मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विज्ञान विभाग, आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक  विश्वविद्यालय,कुमारगंज, अयोध्या (उ.प्र)

किसान भाइयों के लिए उर्वरकों में नकली व मिलावटी की एक जटिल समस्या है। खेती में प्रयोग लाए जाने वाले कृषि निवेदशों में सबसे महंगी सामग्री रासायनिक उर्वरक है। उर्वरकों की शीर्ष उपयोग की अवधि हेतु खरीफ एवं रबी के पूर्व उर्वरक निर्माता फैक्ट्रियों तथा विक्रेताओं द्वारा नकली व मिलावटी उर्वरक बनाने एवं बाजार में उतारने की कोशिश होती है। इसका सीधा प्रभाव किसानों पर पड़ता है। इसलिए उर्वरकों का सही पहचान करने के लिए किसानों के पास एक जटिल समस्या है। नकली व मिलावटी उर्वरकों की समस्या से निपटने के लिए भारत सरकार ने कई रोक अधिनियम लगाए हैं।

किसान भाइयों को उर्वरक की खरीददारी करते समय उर्वरकों की शुद्धता मोटे तौर पर परख लें जैसे- बीजों की शुद्धता बीज को दांतों से दबाने पर कट्ट एवं किच्च की आवाज से, कपड़े की गुणवत्ता उसे छूकर या मसल कर, दूध की शुद्धता उसे उंगली से टपकाकर तथा घी की शुद्धता दानेदार का अनुभव करके पहचान करते हैं।

कृषकों के बीच प्रचलित उर्वरकों में से प्राय: यूरिया, डी ए पी, सुपर फास्फेट, म्यूरेट आफ पोटाश तथा जिंक सल्फेट नकली व मिलावटी रूप में बाजार में उतारे जाते हैं। खरीददारी करते समय किसान भाई इसके प्रथम दृष्टतया परख निम्न सरल विधि से कर सकते हैं और प्रथम दृष्टतया उर्वरक नकली पाया जाने पर इसकी जांच किसान सेवा केंद्र पर उपलब्ध टेस्टिंग किट से की जा सकती है। टेस्टिंग किट किसान सेवा केंद्रों पर उपलब्ध कराए जा रहे हैं ऐसी स्थिति में विधिक कार्यवाही किए जाने हेतु इसकी सूचना जनपद के कृषि उप निदेशक [प्रसार], जिला कृषि अधिकारी एवं कृषि निदेशक को दी जा सकती है ।

यूरिया

यह एक कार्बनिक योगिक है। जिसका उपयोग किसान भाई नाइट्रोजन की पूर्ति के लिए करते हैं। यूरिया में 46.6त्न नाइट्रोजन पाया जाता है। यूरिया को पौधों के जीवन का मूल घटक कहा जाता है ।

पहचानने की विधि

1. दाना सफेद, चमकदार तथा गोलाकार होते हैं।

2. पानी में पूरी तरह से घुल जाना और छूने पर शीतल की अनुभूति शुद्धतम का प्रारूप है।

3. गर्म तवे पर रखने से दाना पिघल जाता है, आग को तेज कर दिया जाए तो कुछ नहीं बचता।

डीएपी (डाई अमोनियम फास्फेट) डीएपी का प्रयोग किसान भाई मुख्य रूप से फास्फोरस की पूर्ति के लिए करते हैं। डीएपी में 18प्रतिशत नाइट्रोजन तथा 46प्रतिशत फास्फोरस पाया जाता है। फास्फोरस पौधों के जड़े बनाने में विशेष योगदान रखता है।

पहचानने की विधि 

1. सख्त दानेदार, भूरा, काला, बादामी रंग, नाखूनों से आसानी से छटता है।

2.डीएपी के कुछ दानों को हाथ में लेकर तंबाकू की तरह चूना मिलाकर रगड़ा जाए तो उसमें बहुत तेज अमोनिया जैसी गंध आती है, जिसे सूंघना असहनीय हो जाता है।

3.तवे पर गर्म आग में गर्म करने पर दाने फूल जाते हैं।

सुपर फास्फेट

यह पौधों को फास्फोरस की पूर्ति करने के लिए दी जाती है। सुपर फास्फेट बाजार में 3 ग्रेड पर उपलब्ध है – सिंगल सुपर फास्फेट, डबल सुपर फास्फेट, ट्रिपल सुपर फास्फेट जिसमें क्रमश: 16, 32, 48प्रतिशत फास्फोरस उपलब्ध होते हैं।

पहचानने की विधि

यह सख्त दानेदार, भूरा, काला, बादामी रंगों से युक्त तथा नाखूनों से आसानी से टूटने वाली उर्वरक है और यह पाउडर के रूप में भी मिलता है। इसके दाने को यदि गर्म किया जाए तो इस के दाने फूल जाते हैं।

एम ओ पी (म्यूरेट आफ पोटाश)

 म्यूरेट आफ पोटाश पौधों की पोटेशियम की आपूर्ति को पूरा करता है। म्यूरेट आफ पोटाश में 60प्रतिशत पोटेशियम पाया जाता है। पोटेशियम को गुणवत्ता तत्व भी कहते हैं क्योंकि पोटेशियम दानों के गुणवत्ता में भाग लेता है।

पहचानने की विधि

1. पोटाश की असली पहचान इसका कड़ाकार, सफेद कड़ाका, पिसे नमक तथा मिर्च जैसा मिश्रण होता है।

2. पोटाश के दानों को अगर आपस में नम करने पर यदि दाना आपस में नहीं चिपकते हैं तो समझ लें कि यह असली पोटाश है।

3. पानी में घोलने पर अगर इसका लाल भाग पानी के ऊपर तैरने लगे तो समझ लें की पोटाश असली है।

जिंक सल्फेट

पौधों को जिंक की आपूर्ति के लिए दिया जाता है जिंक सल्फेट में जिंक 21प्रतिशत पाया जाता है। पौधों में फास्फोरस की स्थानांतरण में मुख्य रूप से भाग लेता है।

पहचानने की विधि

जिंक सल्फेट में प्रमुख रूप से मिलाया जाने वाला रसायन मैग्नीशियम सल्फेट है, जोकि जिंक सल्फेट के समान ही होता है इसलिए इसका पहचान करने में कठिनाई होती है। जिंक सल्फेट के घोल में पतला कास्टिक का घोल मिलाने पर सफेद मटमैला मांड जैसा घोल बन जाता है। जिसमें गाढ़ा कास्टिक का घोल मिलाने पर अवक्षेप पूरी तरह घुल जाता है जबकि जिंक सल्फेट के स्थान पर मैग्नीशियम सल्फेट हो तो अवक्षेप पूर्ण रूप से नहीं घुलेगा। जिंक सल्फेट की असली पहचान यह है कि इस के दाने हल्के सफेद, पीले तथा बारीक कण के आकार के होते हैं। यदि डीएपी के घोल में जिंक सल्फेट मिला दिया जाए तो थपकेदार घना अवशेष बन जाता है जबकि मैग्नीशियम सल्फेट मिलाने पर ऐसा नहीं होता है। किसान भाइयों को उर्वरक खरीदते समय ध्यान देने योग्य बातें-उर्वरक खरीदते समय उस पर अंकित वजन करा लेना चाहिए।  

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कैसे करें नकली और मिलावटी उर्वरक की पहचान, जानिए क्या बता रहे हैं विशेषज्ञ

> उमेश कुमार
> रोबिन कुमार  
> प्रगति पांडेय
>  रोहित कुमार जायसवाल 
मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विज्ञान विभाग, आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक  विश्वविद्यालय,कुमारगंज, अयोध्या (उ.प्र)

किसान भाइयों के लिए उर्वरकों में नकली व मिलावटी की एक जटिल समस्या है। खेती में प्रयोग लाए जाने वाले कृषि निवेदशों में सबसे महंगी सामग्री रासायनिक उर्वरक है। उर्वरकों की शीर्ष उपयोग की अवधि हेतु खरीफ एवं रबी के पूर्व उर्वरक निर्माता फैक्ट्रियों तथा विक्रेताओं द्वारा नकली व मिलावटी उर्वरक बनाने एवं बाजार में उतारने की कोशिश होती है। इसका सीधा प्रभाव किसानों पर पड़ता है। इसलिए उर्वरकों का सही पहचान करने के लिए किसानों के पास एक जटिल समस्या है। नकली व मिलावटी उर्वरकों की समस्या से निपटने के लिए भारत सरकार ने कई रोक अधिनियम लगाए हैं।

किसान भाइयों को उर्वरक की खरीददारी करते समय उर्वरकों की शुद्धता मोटे तौर पर परख लें जैसे- बीजों की शुद्धता बीज को दांतों से दबाने पर कट्ट एवं किच्च की आवाज से, कपड़े की गुणवत्ता उसे छूकर या मसल कर, दूध की शुद्धता उसे उंगली से टपकाकर तथा घी की शुद्धता दानेदार का अनुभव करके पहचान करते हैं।

कृषकों के बीच प्रचलित उर्वरकों में से प्राय: यूरिया, डी ए पी, सुपर फास्फेट, म्यूरेट आफ पोटाश तथा जिंक सल्फेट नकली व मिलावटी रूप में बाजार में उतारे जाते हैं। खरीददारी करते समय किसान भाई इसके प्रथम दृष्टतया परख निम्न सरल विधि से कर सकते हैं और प्रथम दृष्टतया उर्वरक नकली पाया जाने पर इसकी जांच किसान सेवा केंद्र पर उपलब्ध टेस्टिंग किट से की जा सकती है। टेस्टिंग किट किसान सेवा केंद्रों पर उपलब्ध कराए जा रहे हैं ऐसी स्थिति में विधिक कार्यवाही किए जाने हेतु इसकी सूचना जनपद के कृषि उप निदेशक [प्रसार], जिला कृषि अधिकारी एवं कृषि निदेशक को दी जा सकती है ।

यूरिया

यह एक कार्बनिक योगिक है। जिसका उपयोग किसान भाई नाइट्रोजन की पूर्ति के लिए करते हैं। यूरिया में 46.6त्न नाइट्रोजन पाया जाता है। यूरिया को पौधों के जीवन का मूल घटक कहा जाता है ।

पहचानने की विधि

1. दाना सफेद, चमकदार तथा गोलाकार होते हैं।

2. पानी में पूरी तरह से घुल जाना और छूने पर शीतल की अनुभूति शुद्धतम का प्रारूप है।

3. गर्म तवे पर रखने से दाना पिघल जाता है, आग को तेज कर दिया जाए तो कुछ नहीं बचता।

डीएपी (डाई अमोनियम फास्फेट) डीएपी का प्रयोग किसान भाई मुख्य रूप से फास्फोरस की पूर्ति के लिए करते हैं। डीएपी में 18प्रतिशत नाइट्रोजन तथा 46प्रतिशत फास्फोरस पाया जाता है। फास्फोरस पौधों के जड़े बनाने में विशेष योगदान रखता है।

पहचानने की विधि 

1. सख्त दानेदार, भूरा, काला, बादामी रंग, नाखूनों से आसानी से छटता है।

2.डीएपी के कुछ दानों को हाथ में लेकर तंबाकू की तरह चूना मिलाकर रगड़ा जाए तो उसमें बहुत तेज अमोनिया जैसी गंध आती है, जिसे सूंघना असहनीय हो जाता है।

3.तवे पर गर्म आग में गर्म करने पर दाने फूल जाते हैं।

सुपर फास्फेट

यह पौधों को फास्फोरस की पूर्ति करने के लिए दी जाती है। सुपर फास्फेट बाजार में 3 ग्रेड पर उपलब्ध है – सिंगल सुपर फास्फेट, डबल सुपर फास्फेट, ट्रिपल सुपर फास्फेट जिसमें क्रमश: 16, 32, 48प्रतिशत फास्फोरस उपलब्ध होते हैं।

पहचानने की विधि

यह सख्त दानेदार, भूरा, काला, बादामी रंगों से युक्त तथा नाखूनों से आसानी से टूटने वाली उर्वरक है और यह पाउडर के रूप में भी मिलता है। इसके दाने को यदि गर्म किया जाए तो इस के दाने फूल जाते हैं।

एम ओ पी (म्यूरेट आफ पोटाश)

 म्यूरेट आफ पोटाश पौधों की पोटेशियम की आपूर्ति को पूरा करता है। म्यूरेट आफ पोटाश में 60प्रतिशत पोटेशियम पाया जाता है। पोटेशियम को गुणवत्ता तत्व भी कहते हैं क्योंकि पोटेशियम दानों के गुणवत्ता में भाग लेता है।

पहचानने की विधि

1. पोटाश की असली पहचान इसका कड़ाकार, सफेद कड़ाका, पिसे नमक तथा मिर्च जैसा मिश्रण होता है।

2. पोटाश के दानों को अगर आपस में नम करने पर यदि दाना आपस में नहीं चिपकते हैं तो समझ लें कि यह असली पोटाश है।

3. पानी में घोलने पर अगर इसका लाल भाग पानी के ऊपर तैरने लगे तो समझ लें की पोटाश असली है।

जिंक सल्फेट

पौधों को जिंक की आपूर्ति के लिए दिया जाता है जिंक सल्फेट में जिंक 21प्रतिशत पाया जाता है। पौधों में फास्फोरस की स्थानांतरण में मुख्य रूप से भाग लेता है।

पहचानने की विधि

जिंक सल्फेट में प्रमुख रूप से मिलाया जाने वाला रसायन मैग्नीशियम सल्फेट है, जोकि जिंक सल्फेट के समान ही होता है इसलिए इसका पहचान करने में कठिनाई होती है। जिंक सल्फेट के घोल में पतला कास्टिक का घोल मिलाने पर सफेद मटमैला मांड जैसा घोल बन जाता है। जिसमें गाढ़ा कास्टिक का घोल मिलाने पर अवक्षेप पूरी तरह घुल जाता है जबकि जिंक सल्फेट के स्थान पर मैग्नीशियम सल्फेट हो तो अवक्षेप पूर्ण रूप से नहीं घुलेगा। जिंक सल्फेट की असली पहचान यह है कि इस के दाने हल्के सफेद, पीले तथा बारीक कण के आकार के होते हैं। यदि डीएपी के घोल में जिंक सल्फेट मिला दिया जाए तो थपकेदार घना अवशेष बन जाता है जबकि मैग्नीशियम सल्फेट मिलाने पर ऐसा नहीं होता है। किसान भाइयों को उर्वरक खरीदते समय ध्यान देने योग्य बातें-उर्वरक खरीदते समय उस पर अंकित वजन करा लेना चाहिए।  

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