vandna parmar
उज्जैन। तहसील के किसान औषधीय खेती कर सामान्य से पांच गुना अधिक लाभ कमा रहे हैं। तहसील के रूपाहेड़ा गांव के प्रगतिशील किसान भौमसिंह पंवार ने एक बीघा रकबा में अश्वगंधा की बोवनी की थी। लागत खर्च निकाल कर सवा लाख रुपए की कमाई हुई। आयुर्वेद औषधि निर्माता ब्रांडेड कंपनियां आयुर्वेद उत्पादों को किसानों से अच्छे दाम में खरीदती हैं। कृषक भौमसिंह ने पिछले साल एक बीघा में अश्वगंधा का 6 किलो बीज बोया था, जिसमें अश्वगंधा की उपज चार क्विंटल हुई और नीमच मंडी में उसकी जड़ 35 हजार रुपए प्रति क्विंटल बेची। पत्तियों का भूसा 12 हजार में बेचा। इस प्रकार आय एक लाख 52 हजार लागत खर्च 25 हजार रुपए काट के शुद्ध लाभ मिला एक लाख 27 हजार हुआ। इस बार भौमसिंह ने पांच बीघा में अश्वगंधा उगाया है। एक बीघा में लागत बीज की कीमत 2 हजार रुपए, डीएपी उर्वरक एक थैली कीमत 1200 रुपये, निंदाई-कटाई एवं उखाडऩे की मजदूरी 20 हजार सहित कुल लागत खर्च आया 25 हजार आएगा।
पशु भी नहीं खाते
किसान पंवार ने बताया कि एक बीघा में सोयाबीन बोने पर चार क्विंटल के औसत से 30 हजार रुपए की ही कमाई होती, जबकि अश्वगंधा से एक बीघा में सवा लाख रुपए की कमाई हुई। अश्वगंधा की खड़ी फसल को मवेशी भी नहीं खाते। बकरे, घोड़ा आदि जानवरों को इसका स्वाद अच्छा नहीं लगता है, जिससे इसकी सुरक्षा करने बागड़ लगाने की भी जरूरत नहीं है।
अश्वगंधा औषधीय खेती है। तीन से साढ़े तीन माह में फसल तैयार हो जाती है। अश्वगंधा रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाती है। हर तरह की बीमारी में बिना साइड इफेक्ट के काम करती है। अश्वगंधा को बोने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए शासन को चाहिए कि इसे उद्यानिकी विभाग की योजना में शामिल करना चाहिए।
डॉ. राजेश्वरी मेहरा, आयुष चिकित्सक
रबी सीजन में कृषक भौमसिंह पंवार एवं कृषक शैलेंद्रसिंह राठौर सहित जिले के किसानों ने इस सीजन में करीब 25 हेक्टेयर में अश्वगंधा की फसल उगाने के लिए 15 अक्टूबर को इसकी बोवनी कर दी है। इस फसल की जड़ें एवं पत्तियां दोनों बिकती हैं। आयुर्वेदिक खेती दोनों खरीफ एवं रबी सीजनों में बोने की सलाह किसानों को दी है। खेत में पानी जमा नहीं होना चाहिए। रबी सीजन में 4 बार सिंचाई पर्याप्त है।
ज्योति शर्मा, ग्रामीण विकास अधिकारी, उद्यानिकी विभाग नर्सरी ग्राम मौलाना
अन्य प्रांतों की अपेक्षा अश्वगंधा की फसल देश के पंजाब, राजस्थान के अलावा अब मप्र के मंदसौर, नीमच, सुवासरा एवं अब उज्जैन जिले में भी इसको बोने की शुरुआत हुई है। बरसात के सीजन में जून माह में और रबी सीजन में 15 अक्टूबर तक अश्वगंधा की बोवनी करनी चाहिए। कम नमी होने पर बारिश के मौसम में ढलान वाले खेतों में यह फसल अधिक मुनाफा देती है।
अनिल कुमार सक्सेना, कृषि विस्तार अधिकारी