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पशुओं में ब्रूसेल्लोसिस रोग, कारण और निदान

डॉ शिल्पा गजभिये
पशुचिकित्सा एवं पशुपालन विज्ञान महाविद्यालय रीवा, मप्र
नानाजी देशमुख पशुचिकित्सा एवं पशुपालन विज्ञान विवि

समस्त पालतु पशु ब्रूसेल्लोसिस रोग के प्रति संवेदनशील होते हैं। गाय, भैंस, भेड़, बकरी एवं शूकरों में इस रोग का प्रकोप अत्यधिक होता है। ब्रूसेल्लोसिस रोग पशुओं से मनुष्य में फैलता है। अतः इस रोग का जन स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत अधिक महत्व है। मनुष्य में यह रोग अंडूलेंट ज्वर, माल्टा ज्वर तथा बैंग्स ज्वर के नाम से जाना जाता है। इस रोग से गौवंश में ग्याभिन पशु अधिकांशतः 6- 9 माह एवं भेड़-बकरी में 3-5 माह में गर्भपात हो जाता है।

कारण
यह रोग ब्रूसेल्ला प्रजाति के जीवाणु ब्रूसेल्ला अबोर्टस, ब्रूसेल्ला मेलिटेनसिस, ब्रूसेल्ला सुइस, ब्रूसेल्ला ओविस आदि के संक्रमण से होता है।

रोग का फैलाव
संक्रमित चारा, दाना, पानी एवं दूध से।
बच्चेदानी एवं योनी के स्त्राव के द्वारा।
रोगी पशुओं के मल-मूत्र से।
संक्रमित नर द्वारा प्राकृतिक परिसेवा द्वारा।
त्वचा के घावों, नेत्र श्लेष्मा, थन द्वारा भी रोग का संचरण होता है।

पशुओं में रोग के लक्षण
बू्रसेल्लोसिस में संक्रमण के पश्चात अधिकांश मादा पशुओं में गर्भपात होता है।
तेज बुखार, सुस्ती, बैचेनी व दूध में कमी।
गर्भपात के पश्चात जेर का समय पर नहीं गिरने के कारण बच्चेदानी में मवाद पड़ना। 
पशु का देर से ग्याभिन होना।
नर पशुओं में बुखार, जोड़ों का रोग तथा वृषण शोथ (व्तबीपजपे) आदि मुख्य लक्षण पाये जाते हैं।

मनुष्यों में रोग के लक्षण
सर्दी लगकर बुखार आना एवं बुकार में उतार-चढ़ाब।
जोड़ों में दर्द रहना।
शारीरिक दुर्बलता।
लगातार पेट में दर्द रहना।
सोते समय अधिक परसीना आना।

रोग के उपाय
काटन स्ट्रेन-19 नामक टीके का उपयोग रेाग के बचाव हेतु किया जाता है। 
पशुओं में यह टीका छः से बारह माह की आयु में लगाया जा सकता है। प्रजनन कार्य के लिए प्रयोग होने वाले सांडों में यह टीका नहीं लगाना चाहिए।
देर से ग्याभिन होने वाले पशु की पशु चिकित्सक द्वारा जांच करानी चाहिये।
गर्भपात के समय हुए स्त्रावों, मृत बड़ों ब जैर रोग संक्रामक जीवाणुओं का प्रसार होता हैं। अतः इन पदार्थाें को विशेष सावधानी के साथ गड्डा खोदकर गड़बाना चाहिये।
रोगी पशुओं को स्वस्थ पशुओं से पृथक कर देना चाहिए।
जेर आदि समय पर नहीं गिरने पर बीमार पशु को चिकित्सक को दिखाना चाहिये।

सोशल मीडिया पर देखें खेती-किसानी और अपने आसपास की खबरें, क्लिक करें…

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पशुओं में ब्रूसेल्लोसिस रोग, कारण और निदान

डॉ शिल्पा गजभिये
पशुचिकित्सा एवं पशुपालन विज्ञान महाविद्यालय रीवा, मप्र
नानाजी देशमुख पशुचिकित्सा एवं पशुपालन विज्ञान विवि

समस्त पालतु पशु ब्रूसेल्लोसिस रोग के प्रति संवेदनशील होते हैं। गाय, भैंस, भेड़, बकरी एवं शूकरों में इस रोग का प्रकोप अत्यधिक होता है। ब्रूसेल्लोसिस रोग पशुओं से मनुष्य में फैलता है। अतः इस रोग का जन स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत अधिक महत्व है। मनुष्य में यह रोग अंडूलेंट ज्वर, माल्टा ज्वर तथा बैंग्स ज्वर के नाम से जाना जाता है। इस रोग से गौवंश में ग्याभिन पशु अधिकांशतः 6- 9 माह एवं भेड़-बकरी में 3-5 माह में गर्भपात हो जाता है।

कारण
यह रोग ब्रूसेल्ला प्रजाति के जीवाणु ब्रूसेल्ला अबोर्टस, ब्रूसेल्ला मेलिटेनसिस, ब्रूसेल्ला सुइस, ब्रूसेल्ला ओविस आदि के संक्रमण से होता है।

रोग का फैलाव
संक्रमित चारा, दाना, पानी एवं दूध से।
बच्चेदानी एवं योनी के स्त्राव के द्वारा।
रोगी पशुओं के मल-मूत्र से।
संक्रमित नर द्वारा प्राकृतिक परिसेवा द्वारा।
त्वचा के घावों, नेत्र श्लेष्मा, थन द्वारा भी रोग का संचरण होता है।

पशुओं में रोग के लक्षण
बू्रसेल्लोसिस में संक्रमण के पश्चात अधिकांश मादा पशुओं में गर्भपात होता है।
तेज बुखार, सुस्ती, बैचेनी व दूध में कमी।
गर्भपात के पश्चात जेर का समय पर नहीं गिरने के कारण बच्चेदानी में मवाद पड़ना। 
पशु का देर से ग्याभिन होना।
नर पशुओं में बुखार, जोड़ों का रोग तथा वृषण शोथ (व्तबीपजपे) आदि मुख्य लक्षण पाये जाते हैं।

मनुष्यों में रोग के लक्षण
सर्दी लगकर बुखार आना एवं बुकार में उतार-चढ़ाब।
जोड़ों में दर्द रहना।
शारीरिक दुर्बलता।
लगातार पेट में दर्द रहना।
सोते समय अधिक परसीना आना।

रोग के उपाय
काटन स्ट्रेन-19 नामक टीके का उपयोग रेाग के बचाव हेतु किया जाता है। 
पशुओं में यह टीका छः से बारह माह की आयु में लगाया जा सकता है। प्रजनन कार्य के लिए प्रयोग होने वाले सांडों में यह टीका नहीं लगाना चाहिए।
देर से ग्याभिन होने वाले पशु की पशु चिकित्सक द्वारा जांच करानी चाहिये।
गर्भपात के समय हुए स्त्रावों, मृत बड़ों ब जैर रोग संक्रामक जीवाणुओं का प्रसार होता हैं। अतः इन पदार्थाें को विशेष सावधानी के साथ गड्डा खोदकर गड़बाना चाहिये।
रोगी पशुओं को स्वस्थ पशुओं से पृथक कर देना चाहिए।
जेर आदि समय पर नहीं गिरने पर बीमार पशु को चिकित्सक को दिखाना चाहिये।

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