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अब कमरे में भी पैदा होगी दुनिया की सबसे महंगी सब्जी, फायदे जानकर हो जाएंगे हैरान

पांच साल बाद सफल हुआ शोध, गुणवत्ता भी पहाड पर होने वाली सब्जी के समान

बर्फीले पहाडों पर होने वाली और 20 से 30 हजार रुपए किलो बिकने वाली गुच्छी अब कमरे में भी पैदा हो सकती है। यह कमाल कर दिखाया है मशरूम अनुसंधान निदेशालय सोलन के वैज्ञानिकों ने। दरअसल मशरूम अनुसंधान निदेशालय सोलन में पिछले पांच साल से वैज्ञानिक शोध में लगे हुए थे। वैज्ञानिकों के शोध को प्रयोगशाला और ग्रीनहाउस के स्तर पर सफलता मिली है। निदेशालय का इस वर्ष का यह दूसरा सफल शोध है। प्राकृतिक और कमरे में उगाई गई गुच्छी की गुणवत्ता भी समान है। वहीं अंतिम शोध में गुच्छी (मोर्केला) की बंपर फसल निकली है। हिमाचल, उत्तराखंड व जम्मू-कश्मीर के पहाड़ों में प्राकृतिक तौर पर उगने वाली औषधीय गुणों से भरपूर गुच्छी को लोग घर में मशरूम की तरह तैयार कर सकेंगे।

दुनिया की सबसे महंगी सब्‍ज‍ियों में शुमार

गुच्छी पहाडी जंगलों में प्राकृतिक तौर पर गुच्छी उगती है। यही गुच्छी करीब 25 से 30 हजार रुपये तक प्रति किलो के हिसाब से बिकती है। यह दुनिया की सबसे महंगी सब्‍ज‍ियों में शुमार है। गुच्छी का निर्यात भी किया जाता है। डीएमआर के विशेषज्ञ डॉ. अनिल कुमार ने बताया कि अभी तक प्रदेश में करीब साढ़े छह हजार फुट से अधिक की ऊंचाई में गुच्छी देवदार, कायल आदि के जंगलों में प्राकृतिक रूप से उगती है।

विटामिन, आयरन और कई अन्य तत्वों का खजाना

बीमारियों से लड़ने में सहायक गुच्छी में विटामिन डी, सी, के, आयरन, कॉपर, जिंक व फॉस्फोरस अच्छी मात्रा में पाया जाता है। गुच्छी एंटीऑक्सिडेंट भी है। वैज्ञानिकों के अनुसार इसका सेवन गठिया, थायराइड, बोन हेल्थ व मानसिक तनाव को खत्म करने में सहायक होता है। दिल के रोगों व शरीर की चोट को भी जल्द भरने में यह लाभकारी है।

गुच्छी की छह किस्में

मशरूम अनुसंधान निदेशालय सोलन के निदेशक ने बताया कि उत्तरी भारत के पहाड़ी प्रदेशों में छह तरह की गुच्छी पाई जाती है। इनमें मॉर्केला एस्कुलेंटा, मॉर्केला एंगस्टीसेप्स, मॉर्केला क्रैसेप्स, मॉर्केला डेलिशियस, मॉर्केला कोनिका व मॉर्केला सेमिलिब्रा। सोलन में मॉर्केला एंगस्टीसेप्स पर शोध किया जा रहा है।

गुच्छी कई रोगों से लडने में सहायक

गुच्छी में विटामिन डी, सी, के, आयरन, कॉपर, जिंक व फॉसफोरस अच्छी मात्रा में पाया जाता है। विज्ञानियों के अनुसार इसका सेवन गठिया, थायराइड, बोन हेल्थ व मानसिक तनाव को खत्म करने में सहायक होता है। दिल के रोगों व शरीर की चोट को भी जल्द भरने में यह लाभकारी है।

ग्रीन हाउस में पूरी तरह विकसित गुच्छी तैयार की

अनुसंधान कर रहे विज्ञानी डॉ. अनिल कुमार ने बताया कि वर्ष 2017 से इस पर कार्य चल रहा है। पहले लैब में इसका स्पॉन तैयार किया। इसमें सफलता मिली है। लैब में एक सेंटीमीटर और ग्रीन हाउस में पूरी तरह विकसित गुच्छी तैयार की है। जल्द हमारे पास ऐसी तकनीक होगी, जिसे किसानों से साझा कर सकेंगे।

वर्ष 2017 से इस पर चल रहा है शोध

डॉ. वीपी शर्मा, निदेशक मशरूम अनुसंधान निदेशालय सोलन ने बताया कि खुंब अनुसंधान निदेशालय ने वर्ष 2017 से गुच्छी पर शोध शुरू किया था। पहले वर्ष शोध में ज्यादा सफलता हाथ नहीं लगी थी। लेकिन 2020 से शोध में सफलता मिलनी शुरू हो गई थी। इसके बाद अब सफल शोध के साथ इस बार गुच्छी की फसल भी अच्छी आई है।

अब कमरे में भी पैदा होगी दुनिया की सबसे महंगी सब्जी, फायदे जानकर हो जाएंगे हैरान

पांच साल बाद सफल हुआ शोध, गुणवत्ता भी पहाड पर होने वाली सब्जी के समान

बर्फीले पहाडों पर होने वाली और 20 से 30 हजार रुपए किलो बिकने वाली गुच्छी अब कमरे में भी पैदा हो सकती है। यह कमाल कर दिखाया है मशरूम अनुसंधान निदेशालय सोलन के वैज्ञानिकों ने। दरअसल मशरूम अनुसंधान निदेशालय सोलन में पिछले पांच साल से वैज्ञानिक शोध में लगे हुए थे। वैज्ञानिकों के शोध को प्रयोगशाला और ग्रीनहाउस के स्तर पर सफलता मिली है। निदेशालय का इस वर्ष का यह दूसरा सफल शोध है। प्राकृतिक और कमरे में उगाई गई गुच्छी की गुणवत्ता भी समान है। वहीं अंतिम शोध में गुच्छी (मोर्केला) की बंपर फसल निकली है। हिमाचल, उत्तराखंड व जम्मू-कश्मीर के पहाड़ों में प्राकृतिक तौर पर उगने वाली औषधीय गुणों से भरपूर गुच्छी को लोग घर में मशरूम की तरह तैयार कर सकेंगे।

दुनिया की सबसे महंगी सब्‍ज‍ियों में शुमार

गुच्छी पहाडी जंगलों में प्राकृतिक तौर पर गुच्छी उगती है। यही गुच्छी करीब 25 से 30 हजार रुपये तक प्रति किलो के हिसाब से बिकती है। यह दुनिया की सबसे महंगी सब्‍ज‍ियों में शुमार है। गुच्छी का निर्यात भी किया जाता है। डीएमआर के विशेषज्ञ डॉ. अनिल कुमार ने बताया कि अभी तक प्रदेश में करीब साढ़े छह हजार फुट से अधिक की ऊंचाई में गुच्छी देवदार, कायल आदि के जंगलों में प्राकृतिक रूप से उगती है।

विटामिन, आयरन और कई अन्य तत्वों का खजाना

बीमारियों से लड़ने में सहायक गुच्छी में विटामिन डी, सी, के, आयरन, कॉपर, जिंक व फॉस्फोरस अच्छी मात्रा में पाया जाता है। गुच्छी एंटीऑक्सिडेंट भी है। वैज्ञानिकों के अनुसार इसका सेवन गठिया, थायराइड, बोन हेल्थ व मानसिक तनाव को खत्म करने में सहायक होता है। दिल के रोगों व शरीर की चोट को भी जल्द भरने में यह लाभकारी है।

गुच्छी की छह किस्में

मशरूम अनुसंधान निदेशालय सोलन के निदेशक ने बताया कि उत्तरी भारत के पहाड़ी प्रदेशों में छह तरह की गुच्छी पाई जाती है। इनमें मॉर्केला एस्कुलेंटा, मॉर्केला एंगस्टीसेप्स, मॉर्केला क्रैसेप्स, मॉर्केला डेलिशियस, मॉर्केला कोनिका व मॉर्केला सेमिलिब्रा। सोलन में मॉर्केला एंगस्टीसेप्स पर शोध किया जा रहा है।

गुच्छी कई रोगों से लडने में सहायक

गुच्छी में विटामिन डी, सी, के, आयरन, कॉपर, जिंक व फॉसफोरस अच्छी मात्रा में पाया जाता है। विज्ञानियों के अनुसार इसका सेवन गठिया, थायराइड, बोन हेल्थ व मानसिक तनाव को खत्म करने में सहायक होता है। दिल के रोगों व शरीर की चोट को भी जल्द भरने में यह लाभकारी है।

ग्रीन हाउस में पूरी तरह विकसित गुच्छी तैयार की

अनुसंधान कर रहे विज्ञानी डॉ. अनिल कुमार ने बताया कि वर्ष 2017 से इस पर कार्य चल रहा है। पहले लैब में इसका स्पॉन तैयार किया। इसमें सफलता मिली है। लैब में एक सेंटीमीटर और ग्रीन हाउस में पूरी तरह विकसित गुच्छी तैयार की है। जल्द हमारे पास ऐसी तकनीक होगी, जिसे किसानों से साझा कर सकेंगे।

वर्ष 2017 से इस पर चल रहा है शोध

डॉ. वीपी शर्मा, निदेशक मशरूम अनुसंधान निदेशालय सोलन ने बताया कि खुंब अनुसंधान निदेशालय ने वर्ष 2017 से गुच्छी पर शोध शुरू किया था। पहले वर्ष शोध में ज्यादा सफलता हाथ नहीं लगी थी। लेकिन 2020 से शोध में सफलता मिलनी शुरू हो गई थी। इसके बाद अब सफल शोध के साथ इस बार गुच्छी की फसल भी अच्छी आई है।

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