डा. माधुरी शर्मा, सह.प्राध्यापक
डॉ. हरि आर, सहायक प्राध्यापक
डॉ. प्रीति मिश्रा, सहायक प्राध्यापक
एवं महेंद्र सिंह, शोध छात्र
मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय नानाजी देषमुख पशु चिकित्सा एवं पशुपालन विज्ञान विश्वविद्यालय, जबलपुर
पशु चिकित्सा एवं पशुपालन विस्तार शिक्षा विभाग पशु चिकित्सा एवं पशुपालन, महाविद्यालय, जबलपुर
शेर ए कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चरल साइंस एंड टेक्नोलॉजीए फैकल्टी ऑफ़ फिशरीज, जम्मू एंड कश्मीर
एकीकृत मछली पालन
एकीकृत समन्वित मछली पालन का अर्थ है फसल, मवेशी और मछलियों का एक साथ पालन करना। एकीकृत पालन का मुख्य उद्देश्य है एकल पालन के अवशिष्ट पदार्थ का पुनर्चक्रण एवं संसाधनों का इष्टतम उपयोग करना। मत्स्य पालन जब अन्य पषुओं जैसे (गाय, भैंस) मुर्गी, सूकर (सुअर), बतख के साथ अथवा कृषि (धान) के साथ किया जाता है। पषुओं के मलमूत्र (अवषिष्ट) पदार्थो को कार्बनिक खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार के मत्स्य पालन से कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
मछली सह मुर्गीपालन
मछली पालन संबंधित व्यवस्थाएं – मछली पालन के लिए तालाब का चयन एवं व्यवस्था:- तालाब का चयन इसके लिए तालाब जिसकी गहराई कम से कम 2 मी हो तथा पानी भरने के लिए जलस्त्रोत हो ऐसे स्थान का चयन करना चाहिए।
प्रबंधन
अनवांछित जलीय वनस्पति (जलीय खरपतवार) का, अवाछनीय मछलियों का, जलीय कीटों को मत्स्य बीज संचयन पूर्व तालाब से निकाल देना चाहिए।
अनवांछित जलीय वनस्पतियों को मानव श्रम लगाकर जड़ से उखाड़कर सुखाकर जला देना चाहिए। यदि तालाब बड़ा है तथा इनकी मात्रा बहुत अधिक है तब मानव श्रम द्वारा इन जलीय खरपतवारो का उन्मूलन सम्भव नही हो पाता है तब हम विभिन्न रसायनो का प्रयोग करके इनका नियंत्रण करते है जो सारिणी मे दर्शाया गया है।
सारिणी: अनवांछित जलीय वनस्पतियों (जलीय खरपतवारं) का नियंत्रण
जलीय खरपतवार रसायन उपयोग की दर
- पिस्टिया सिमाजीन 5.0 किग्रा/ हेक्ट. मी.
- जलकुम्भी 2-4 डी. 4-6 किग्रा/हेक्ट.मी.
- साल्वीनिया पैराक्वाट 0.02 किग्रा/हेक्ट.मी.
- हाईड्रिला डाईक्लोवेनिल 15 किग्रा/हेक्ट.मी.
- निम्फिया पैराक्वाट 0.2 किग्रा/हेक्ट. मी.
- नीलम्बो सिमाजीन 0.5 किग्रा /हेक्ट. मी.
- आईपोमिया 2-4, डी 5.0 किग्रा/हेक्ट.मी.
इसके अतिरिक्त जलमग्नीय वनस्पतियो का नियंत्रण जैविक विधि, ग्रास कार्प द्वारा किया जा सकता है। जो इन वनस्पतियो को खाती है। इसी प्रकार टिलापिया मछली भी जलीय वनस्पति (खरपतवार) का भक्षण करती है।
जलीय कीट जीरों (फ्राई) को एवं छोटी मछलियों को मारकर खा जाते है। इनमे जलबिच्छू, जलकाठी, नोटोनेक्टा, साईबिस्टर एवं डेªगन फ्लाई कीट प्रमुख है। यह कीट श्वास लेने के लिये जल की सतह पर आते है। इनका नर्सरी तालाब में मत्स्य बीज संचय पूर्व इन कीटो के विनाश करना आवश्यक है। इन कीटों के विनाश के लिये नर्सरी तालाब में छोटे-फंदे का जाल बार-बार चलाना चाहिए। इन्हें साबुन के घोल 54 किग्रा. डीजल एवं 18 किग्रा. साबुन का उपयोग प्रति हेक्टेयर जल क्षेत्र मे करके इन्हे मारा जा सकता है क्योकि कीटो के जल की सतह पर श्वसन के लिये आने पर श्वसन अवरूद्ध हो जाता है और वे मर जाते है इस घोल के डालने के 2-4 दिन के बीच ही मत्स्य बीज का नर्सरी में संचय कर देते है । इसके अतिरिक्त डाईएल्डिन, गैमेक्सीन जैसे कीटनाशकों का प्रयोग भी कीट उन्मूलन के लिये किया जाता है।
मासभक्षी तथा अवांछित मछलियो के उन्मूलन के लिये बारीक छिद्रो वाले जाल का उपयोग किया जाता है। आवष्यकता पड़ने पर विष का भी प्रयोग किया जा सकता है इसके लिये महुऐ की खली का उपयोग 2000-3000 किग्रा प्रति हेक्टेयर मीटर जल क्षेत्र में करते है। महुये की खली इन अवांछनीय मछलियो को मारने में सहायक तो होती ही है, साथ-ही जैविक खाद का भी काम करती है । अन्य लाभो में महुये की खली के प्रयोग से मरी हुयी मछलियो मानव आहार में प्रयुक्त हो सकती है। इसके अतिरिक्त 30-50 किग्रा. प्रति मी. की दर से ब्लीचिंग पाउंडर का प्रयोग परभक्षियों को नियंत्रित करने के लिये किया जा सकता है।
तालाब में एक हेक्टर जलक्षेत्र में 250-350 किलोग्राम चूना डालना चाहिए।
मत्स्य बीज संचय – तालाब में प्रति हेक्टर 5000 अंगुलिकाऐं (फिंगरलिंग) संचयित करना चाहिए।
मुर्गियों का चयन एवं उसकी व्यवस्था
इसके लिए रोड आईलैंड या सफेद लेग हार्न प्रजाति उपयुक्त है। प्रति हेक्टर जलक्षेत्र के लिए 400-500 मुर्गी रखना उपयुक्त होता है। मछली सह मुर्गीपालन के लिए मुर्गियों को रखने के लिए आधुनिक सघन प्रणाली अपनायी जाती है। इनको रखने के लिए बैटरी सिस्टम की तुलना में डीप लीटर सिस्टम को प्राथमिकता दी जाती है। डीप लीटर सिस्टम में लगभग 10 सेमी ऊॅची बारीक किन्तु सूखी धान की भूसी, गेहूं की भूसी लकडी का बुरादा आदि की परत फर्ष पर बिछाई जाती है। मुर्गियों का मलमूत्र नीचे बिछाए गए तह पर गिरता है। लगभग दो माह में यह डीप लीटर बन जाता है। यह बहुत ही अच्छी खाद है। जिसमें लगभग 3 प्रतिषत नाइट्रोजन, 2 प्रतिषत फास्फेट तथा 2 प्रतिषत पोटाष रहता है। मुर्गियों को आयु के अनुरूप संतुलित मुर्गी आहार दिया जाता है।
मछली सह मुर्गी पालन से लाभ
इसमें एक साथ मछली, अण्डे तथा मांस प्राप्ति से अधिक आय होती है। इससे लगभग प्रति हेक्टर प्रतिवर्ष 2000 से 2500 किलोग्राम मछली 60000 से 72000 तक मुर्गी के अण्डे तथा 550-600 किलोग्राम तक मुर्गी का मांस प्राप्त होता है।
तालाब में मछलियों के लिए अतिरिक्त खाद की आवष्यकता नहीं पड़ती क्योंकि मुर्गियों द्वारा त्यागे गए लीटर (अवषिष्ट पदार्थ) से इसकी पूर्ति हो जाती है।
मछलियों के साथ बतख पालन - बतखों का चयन एवं उनकी व्यवस्था
मछलियों के साथ बतख पालन के लिए सिलहेट मेटे, नागेष्वरी, खाकी केम्पबेल प्रजाति का चयन किया जा सकता है। इंडियन रनर प्रजाति सबसे उपयुक्त मानी जाती है। 2-3 माह में बतखों के बच्चों को पालन हेतु उपयोग में लाना चाहिए। सामान्यतः एक हेक्टर के तालाब में 200-300 बतख पर्याप्त होती है। एक बतख एक दिन में लगभग 125 ग्राम विष्ठा का त्याग करती है। बतखों का प्राकृतिक आहार कीड़े मकोड़े, पौधे, मेंढ़क के बच्चे होते है जो उन्हें तालाब के जल से मिल जाते है। प्राकृतिक भोजन बतखों के लिए पर्याप्त नहीं होता है। अतः इन्हें पूरक आहार के रूप में मुर्गी बतख आहार राइसब्रान कोढ़ा 1ः2 के अनुपात में 100 ग्राम प्रति बतख को प्रतिदिन खिलाना पड़ता है। बतख दिन के समय पोखर में विचरण करती है। रात में उन्हें घर की जरूरत होती है। तालाब या पोखर की मेड पर लकड़ी या बांस से बतख का बाड़ा बनाना चाहिए। बाड़ा हवादार होना चाहिए। बतखों का घर इतना बड़ा होना चाहिए कि एक बतख के लिए कम से कम 0.3 से 0.5 वर्गमीटर की जगह हो।
मछली सह बतख पालन
मछली पालन संबंधित व्यवस्थाएं
मछली पालन के लिए तालाब का चयन एवं व्यवस्था:- तालाब का चयन इसके लिए तालाब जिसकी गहराई कम से कम 2 मी हो तथा पानी भरने के लिए जलस्त्रोत हो ऐसे स्थान का चयन करना चाहिए। अनवांछित जलीय वनस्पति तथा मांसभक्षी मछलियों को मत्स्य बीज संचयन पूर्व तालाब से निकाल देना चाहिए। तालाब में एक हेक्टर जलक्षेत्र में 250-350 किलोग्राम चूना डालना चाहिए।
मत्स्य बीज संचय
प्रति हेक्टर 5 से 7 हजार अंगुलिकाएॅ (फिगरलिंग) संचय करना चाहिए। इसके लिए हम मछलियों की विभिन्न प्रजाति का चयन कर सकते हैं जैसे सतह पर भोजन करने वाली मछलियों कतला तथा सिल्वर कार्प के मत्स्य बीज की मात्रा 40 प्रतिषत (कतला 25 प्रतिषत, सिल्वर कार्प 15 प्रतिषत), मध्यम सतह का भोजन लेने वाली रोहू एवं ग्रास कार्प की मात्र 30 प्रतिषत (राहू 20 प्रतिषत, ग्रास कार्प 10 प्रतिषत) तथा जल की तली पर भोजन करने वाली मृगल एवं कामन कार्प 30 प्रतिषत (मृगल 20 प्रतिषत, काॅमन कार्य 10 प्रतिषत) संचय करना चाहिए।
ग्रास कार्प
जलीय वनस्पतियों को अपने भोजन में मुख्य रूप से लेती है अतः जलीय पौधे हाइड्रिला आदि को भोजन के रूप में देना चाहिए।
मछली सह बतख पालन से लाभ
मछली सह बतख पालन से प्रति हेक्टर प्रतिवर्ष 2500-3000 किलो ग्राम मछली का उत्पादन होता है। इसके साथ 15000 से 16000 बतख के अण्डे एवं 500 से 600 किलोग्राम बतख का मांस प्राप्त होता है। इस प्रकार मछली के साथ बतख पालन करने से किसानों का अतिरिक्त आय मिल जाती है।
बतखों की विष्ठा (अपषिष्ट पदार्थ) का उपयोग तालाब में खाद या उर्वरक के रूप में किया जाता है। तालाब में अतिरिक्त उर्वरक या खाद डालने की आवष्यकता नहीं पड़ती है। अतः उर्वरक पर होने वाले व्यय की बचत हो जाती है। विष्ठा मछली की वृद्धि के लिए लाभदायक होती है।
बतखें मछलियों के गिराये गए आहार तथा विष्ठा को भोजन के रूप में ग्रहण करती है जिससे मछलियों को कृत्रिम आहार देने की आवष्यकता नहीं होती है। कृत्रिम आहार पर होने वाले व्यय की बचत हो जाती है।
बतखें जलीय कीड़े-मकोड़े, पौधे, मेढ़क के लार्वा या टेडपोल को भोजन के रूप में ग्रहण करती है। इनमें से ज्यादातर जीव मछलियों के लिए हानिकारक होते है। अतः बतखें मछलियों की रक्षा करने का कार्य भी करती है।
बतखें जल की वनस्पतियों भोजन को रूप में लेकर उन्हें नियंत्रित करती है। बतखों के तैरते रहने से वायुमंडल की आक्सीजन जल में घुलती रहती है।
मछली सह गाय पालनः मछली पालन में गाय के गोवर का खाद् के रूप में उपयोग सामान्य रूप से विष्व के सभी भागों में किया जाता है। मछली सह गाय पालन करने के लिए 5-6 गायों से प्राप्त होने वाली गोवर की खाद् एवं मूत्र से 3000 से 4000 किलोग्राम मछली प्रति हेक्टयर प्रतिवर्ष प्राप्त की जा सकती है।