किसानों को मालामाल कर सकती है सरसों की खेती जानिए कैसे

भोपाल, किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कृषि विश्वविद्यालयों के द्वारा विभिन्न फसलों की नई-नई क़िस्में विकसित की जा रही हैं। जिसका मकसद फसलों को सुरक्षा देने के साथ ही उत्पादन को बढ़ाना है। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (एचएयू) के वैज्ञानिकों ने सरसों की नई किस्मों आरएच-1424 और आरएच 1706 इजाद की है, जो बढिया क्वालिटी के तेल के साथ-साथ सेहत को बेमिसाल फायदे प्रदान करती हैं। यह प्रजातियाँ उत्पादन में दूसरी किस्मों से काफी ज्यादा है तथा इसमें तेल की मात्रा 40 प्रतिशत तक है।

प्रति हैक्टेयर 27 क्विंटल तक उत्पादन 
कुलपति प्रो. बीआर कांबोज ने बताया कि विश्वविद्यालय के तिलहन वैज्ञानिक की टीम के द्वारा सरसों की आरएच 1424 व आरएच 1706 दो नई किस्में विकसित की गई हैं। इनमें आरएच-1424 और आरएच 1706 किस्म शामिल है, जो प्रति हैक्टेयर 27 क्विंटल तक उत्पादन दे सकती है। इन किस्मों की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इरुसिक एसिड की मात्रा कम और फैटी एसिड ना के बराबर है। 

इन किसानों को मिलेगा भरपूर फायदा
जलवायु और मिट्टी के लिहाज से आरएच-1424 और आरएच 1706 किस्मों को हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, उत्तरी राजस्थान और जम्मू के खेतों में लगाकर बंपर उत्पादन ले सकते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो हरियाणा और राजस्थान के किसानों को इसकी खेती से ज्यादा लाभ मिलेगा। 

दूसरी किस्मों को मुकाबले ये अधिक उपज और बढिया क्वालिटी 
इस मामले में हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कम्बोज बताते हैं कि ‘दूसरी किस्मों को मुकाबले ये अधिक उपज और बढिया क्वालिटी का तेल देती हैं।’ इन्हें उगाकर देश में सरसों के उत्पादन को बढ़ाने में खास मदद मिलेगी।

आरएच 725 के मुकाबले आरएच-1424 में 14 प्रतिशत अधिक उत्पादन 

ये किस्म बारानी परिस्थितियों में मील का पत्थर साबित हो सकती है। ये किस्म सरसों की पुरानी आरएच 725 के मुकाबले 14 प्रतिशत अधिक उत्पादन देगी। किसान इसकी खेती करके मात्र 139 दिनों में 26 क्विंटल तक उपज ले सकते हैं। इसके बीजों से करीब 40.05 प्रतिशत तक तेल निकाला जा सकता है। बाद में इसकी खली पशुओं को भी पोषण प्रदान करेगी।

आरएच 1706: 38 प्रतिशत तक तेल  

ये एक मूल्यवर्धित किस्म है, जो सिंचित इलाकों में किसानों को मालामाल बना देगी। सिर्फ आमदनी के लिहाज से ही नहीं, ये किस्म सेहत के लिहाज के सभी काफी अहम है। इस किस्म में 2 प्रतिशत से भी कम इरुसिक एसिड होता है और फैटी एसिड का नामो निशान नहीं होता, जिसके कारण फिटनेस फ्रीक लोगों से अच्छा मुनाफा कमाकर दे सकती है। ये किस्म भी 140 दिनों में तैयार होकर करीब 27 क्विटल तक उत्पादन दे सकती है। इसके बीजों से करीब 38 प्रतिशत तक तेल का निष्कासन कर सकते हैं।

किसानों के बीच काफी फेमस है पुरानी किस्म आरएच 725
अभी तक हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने देश को बंपर उपज वाली सरसों की 21 किस्में दी हैं। ये संस्थान सरसों अनुसंधान केंद्रों के बीच काफी मशहूर है ही, साथ ही यहां के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई आरएच 725 सरसों की उन्नत किस्म भी सरसों उत्पादक राज्यों में काफी लोकप्रिय है। ज्यादातर सरसों उत्पादक किसान अच्छा उत्पादन लेने के लिये सरसों की आरएच 725 किस्म को ही तवज्जो देते हैं। 

सरसों अनुसंधान में अग्रणी हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय देश में सरसों अनुसंधान में अग्रणी केंद्र है और अब तक यहां अच्छी उपज क्षमता वाली सरसों की कुल 21 किस्मों को विकसित किया गया है। हाल ही में यहां विकसित सरसों की किस्म आरएच 725 कई सरसों उगाने वाले राज्यों के किसानों के बीच बहुत लोकप्रिय है।
विश्व विद्यालय के कुलपति ने बताया कि सरसों की इन किस्मों को तिलहन वैज्ञानिक की टीम द्वारा विकसित किया गया है। नई विकसित किये जाने वाले किस्मों में डॉ। राम अवतार, आरके श्योराण, नीरज कुमार, मंजीत सिंह, विवेक कुमार, अशोक कुमार, सुभाष चंद्र, राकेश पुनिया, निशा कुमारी, विनोद गोयल, दलीप कुमार, श्वेता कीर्ति पट्टम, महावीर और राजबीर सिंह शामिल है।

बुवाई का समय
रबी सीजन में इसकी बुवाई का सही समय 15 सितंबर से शुरू हो जाता है। 

सरसों की फसल के लिए खाद एवं उर्वरक
सरसों की अच्छी पैदावार के लिए सिंचित क्षेत्र में नाइट्रोजन 80 किलोग्राम, फास्फेट 40 किलोग्राम और पोटाश 40 किलोग्राम उपयुक्त होता है। जबकि असिंचित क्षेत्र के लिए नाइट्रोजन 40 किलोग्राम, फास्फेट 30 ग्राम और पोटाश 30 किलोग्राम देना चाहिए। वहीं खेत की तैयारी के दौरान प्रति हेक्टेयर 40 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद डालना चाहिए।  

बुवाई कैसे करें
सरसों की बुवाई छिटकन विधि से की जाती है। कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर रखें। बीज की 3 से 4 सेंटीमीटर रखें। पाटा लगाकर बीज को मिट्टी में ढक देना चाहिए। 

निराई-गुड़ाई
12 से 15 दिन के बाद फसल की निराई गुड़ाई करके के खरपतवार को निकाल देना चाहिए। वहीं पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 सेमी कर देना चाहिए। इससे पैदावार में भी बढ़ोत्तरी होती है।  

फसल की सिंचाई
पीली सरसों की फसल में सामान्य सरसों की तरह फूल निकलने तक सिंचाई कर रहना चाहिए। वहीं खेत में अच्छे जल निकास की व्यवस्था करना चाहिए।

फसल का प्रमुख रोग
आरा मक्खी- यह कीट सरसों के पत्तों को छेद करके नुकसान पहुंचाता है। इसकी तीव्रता के कारण पौधा पत्ती विहीन हो जाता है और फसल चौपट हो जाती है। इस कीट की सूंडियाँ काले स्लेटी रंग की होती है। 

चित्रित बग- यह कीट लाल और नारंगी का होता है, जो पौधे की पत्तियों के अलावा शाखाओं, तनों, फूलों और फलियों पर प्रहार करता है। 

बालदार सूड़ी-इस कीट की सूड़ी काले और नारंगी रंग की तथा यह बालों से पूरी तरह ढका होता है। यह पौधे को तेजी से पत्ती विहीन कर देता है।
माहूँ- यह पीले रंग का कीट होता है जो पौधो की पत्तियों के अलावा तने के नाजुक हिस्से, फूलों और फलियों को चूसता है। 

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