किसानों को मालामाल कर सकती है धान की नई प्रजाति मालवीय मनीला

इसकी उपज क्षमता है 55 से 64 कुंतल प्रति हेक्टेयर

यूपी सरकार ने दिया है तीन साल के लिए पूरे राज्य में परीक्षण की अनुमति

वैज्ञानिक मानते हैं रोपाई की अवस्था 115 से 120 दिन में पक कर हो जाती है तैयार

इसका बीज अगले वर्ष खरीफ 2024 में होगा उपलब्ध

डॉ शशिकान्त सिंह
कृषि संवाददाता
वाराणसी। वाराणसी के इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के सहयोग से विकसित धान की नई किस्म को पूरे भारत में लॉन्च कर दिया गया है। इस धान के बीज को तैयार करने में बीएचयू के वैज्ञानिकों को 15 साल लगा है।

इस धान को विकसित करने वाले बीएचयू के कृषि वैज्ञानिक प्रो श्रवण सिंह मानते हैं कि यह बहुत जल्दी पकने वाली किस्म है। इसके पौधे की लम्बाई 102 से 110 सेंटीमीटर रहती है। रोपाई की अवस्था में 115 से 120 में पक कर तैयार हो जाता है। उपज क्षमता की बात करे तो 55 से 64 हेक्टेयर प्रति कुंतल रहती है। इसकी खड़ा चावल निकलने का प्रतिशत 79.90%, 68.50% और 63.50% है। इसके चावल की लंबाई 7.0 मिलीमीटर और मोटाई 2.1 मिलीमीटर है। यह एक लम्बा और पतले दाने का चावल है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की प्रजाति पहचान समिति (वैराइटल आईडेंटिफिकेशन कमेटी) ने अपने 98 वें वार्षिक धान समूह बैठक (एनुअल पैडी ग्रुप मीटिंग) 4 से 5 मई में इस वैरायटी को प्रस्तुत किया गया।

कई रोगों से प्रतिरोधक है यह प्रजाति

इस धान की लांचिंग आसाम कृषि विश्वविद्यालय जोरहट में की गई है। किसानों को इस धान को लगाने का फायदा ये है कि यह कई प्रमुख रोगों और कीट पतंगों के लिए प्रतिरोधी और सहनशील है। जैसे लीफ स्पॉट, ब्राउन स्पॉट, बैक्टीरियल लीफब्लाइट, स्टेम बोरर, लीफ फोल्डर, ब्राउन प्लांट हापर, गालमिज इत्यादि। इस किस्म का कम दिन में तैयार होकर अधिक उपज क्षमता, पतला और लंबा दाना, अधिक मूल्य दिलाने वाला चावल और अन्य अच्छे गुणों के कारण उत्तर प्रदेश, बिहार और उड़ीसा के किसानों की लागत कम और आमदनी बढ़ाने में सहयोगी हो सकता है। 

तीन वर्ष तक अखिल भारतीय स्तर पर परीक्षण किया गया

अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (ईरी) और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के संयुक्त प्रयास से विकसित इस प्रजाति का तीन वर्ष तक अखिल भारतीय स्तर पर परीक्षण किया गया। इसके बाद आईसीएआर की बैठक में इसे स्वीकृति मिल गई। बीएचयू के प्रो श्रवण कुमार सिंह के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की टीम डॉ जयसुधा एस, डॉ धीरेंद्र कुमार सिंह, डॉ आकांक्षा सिंह तथा अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (ईरी) फिलिपींस के वैज्ञानिक डॉ अरविंद कुमार तथा डॉ विकास कुमार सिंह ने 15 साल की मेहनत के बाद यह नई किस्म विकसित हुई है। किसानों को इसका बीज अगले वर्ष खरीफ 2024 में उपलब्ध होगा।

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