किसानों के लिए फायदेमंद हो सकती है मटर की नई किस्म ‘काशी पूर्वी’, जानें इसकी खासियत

वाराणसी, मटर की खेती करने वाले किसानों के लिए खुशखबरी है। भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (आईआईवीआर) ने मटर की एक ऐसी किस्म को विकसित किया है, जिसकी बुवाई करने पर बंपर पैदावार मिलेगी। इस किस्म की खासियत है कि यह कम समय में तैयार हो जाएगी। ऐसे में किसानों को सिंचाई और खाद का उपयोग भी कम करना पड़ेगा, जिससे हजारों रुपये की बचत होगी। यह एक तरह की मटर की अगेती किस्म है, जिसकी खेती से किसानों की इनकम बढ़ जाएगी।

नई किस्म का नाम ‘काशी पूर्वी’ 
किसान तक के मुताबिक, वाराणसी स्थित आईआईवीआर ने मटर की इस नई किस्म का नाम ‘काशी पूर्वी’ रखा है। ‘काशी पूर्वी’ की खासियत है कि यह 65 दिन में ही तैयार हो जाएगी। यानी कि किसान भाई 65 दिन बाद फसल की कटाई कर सकते हैं। हालांकि, अभी मटर की जिस किस्म की खेती की जा रही है, उसकी फसल को तैयार होने में 80 से 85 दिन लग जाते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि मटर की नई किस्म 20 दिन पहले ही तैयार हो जाएगी। वहीं, ‘काशी पूर्वी’ की पैदावार भी पारंपरिक मटर के मुकाबले ज्यादा है। एक हेक्टेयर में खेती करने पर 115 से 120 क्विंटल तक मटर का प्रोडक्शन होगा। ऐसे में किसान भाई अगर ‘काशी पूर्वी’ की खेती करते हैं, जो ज्यादा कमाई कर सकेंगे।

अक्टूबर के आखिरी हफ्ते से लेकर नवंबर के पहले हफ्ते के बीच बुवाई 
भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के डॉ. ज्योति देवी और डॉक्टर आर के दुबे ने ‘पूर्वी काशी’ किस्म को विकसित किया है। किसान भाई ‘काशी पूर्वी’ को अक्टूबर के आखिरी हफ्ते से लेकर नवंबर के पहले हफ्ते के बीच बुवाई कर सकते हैं। एक हेक्टेयर में 120 किलो बीज की बुवाई करनी होगी। इससे अच्छी पैदावार मिलेगी। डॉ। ज्योति देवी का कहना है कि इस मटर की आधुनिक विधि से खेती करने की जरूरत है। इसके बीज की बुवाई 7 से 10 सेंटीमीटर की दूरी पर करनी चाहिए। साथ ही पंक्तियों के बीच 30 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए। बुवाई के 35 दिन बाद ही फसल में फूल आने लगते हैं। 65 दिन बाद आप मटर की तुड़ाई कर सकते हैं।

एक हेक्टेयर में 120 क्विंटल तक उपज
काशी पूर्वी की खासियत है कि इसके एक पौधे में 10 से 13 फलियां लगती हैं। एक हेक्टेयर में खेती करने पर 120 क्विंटल तक उपज मिलेगी। भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. टीके बेहरा का कहना है कि काशी पूर्वी को खरीफ और रबी सीजन के दौरान भी बोया जा सकता है। इस फसल के ऊपर सफेद चूर्ण आशिता और रतुआ रोग का प्रभाव न के बराब पड़ने वाला है।

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