आज हम जिस फसल की बात कर रहे हैं, उसका नाम है पार्सली (Parsley)। यह एक सुगंधित पत्तेदार सब्जी है जिसका उपयोग घरेलू भोजन से लेकर होटलों और दवा उद्योगों तक बड़े पैमाने पर होता है। विदेशी बाजारों में इसकी डिमांड बहुत अधिक है, और भारत में भी इसके प्रयोग और खेती को लेकर जागरूकता बढ़ रही है। यही कारण है कि किसान अब पारंपरिक खेती से हटकर पार्सली जैसे नकदी फसलों की ओर रुख कर रहे हैं।
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पार्सली की खेती कैसे करें?
पार्सली की खेती करना न केवल आसान है, बल्कि यह कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली खेती भी मानी जाती है। इसे अक्टूबर महीने में बोया जाता है, जब मौसम थोड़ा ठंडा हो जाता है। खेती की शुरुआत खेत की गहरी जुताई से की जाती है। इसके बाद बीजों को मिट्टी में छिड़क दिया जाता है और सिंचाई की जाती है।
इस फसल के लिए सबसे उपयुक्त मिट्टी दोमट (loamy soil) होती है, जो न तो अधिक रेतीली हो और न ही बहुत भारी। बीजों को अंकुरित होने में 15 से 20 दिन का समय लगता है, और एक बार फसल तैयार हो जाए तो हर 20 से 25 दिन में इसकी कटाई की जा सकती है।
लागत कितनी आती है?
पार्सली की खेती में प्रारंभिक लागत लगभग ₹30,000 आती है, जिसमें बीज, खाद, सिंचाई और मजदूरी शामिल होती है। यह लागत एक एकड़ भूमि के हिसाब से है। अगर आप जैविक खेती करते हैं तो लागत और भी कम हो सकती है, क्योंकि इसमें केमिकल खाद की आवश्यकता नहीं होती।
कमाई कितनी हो सकती है?
अगर सही तरीके से खेती की जाए, तो एक एकड़ से हर महीने ₹50,000 से ₹60,000 तक की कमाई संभव है। यह इसलिए संभव है क्योंकि पार्सली की कीमत भारतीय बाजार में ₹60-₹70 प्रति किलोग्राम तक होती है। वहीं, विदेशी बाजार में इसकी कीमत इससे कई गुना ज्यादा होती है।
एक बार में बोई गई फसल से लगातार कई कटिंग की जा सकती हैं, जिससे मेहनत कम और मुनाफा ज्यादा होता है। इसीलिए इसे नकदी फसल कहा जाता है।
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पार्सली की खेती के फायदे
- बाजार में उच्च मांग
- कम लागत में अधिक लाभ
- हर महीने कटाई की सुविधा
- औषधीय गुणों से भरपूर
- विदेशों में निर्यात की संभावना