नई दिल्ली, केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (Agriculture Minister Narendra Singh Tomar) ने कहा है कि समय रहते कम उपयोग की जाने वाली फसलों का संरक्षण (protection of crops) करने की जरूरत है। जलवायु अनुकूल कृषि और पोषण सुरक्षा के लिए हमारा संघर्ष आपके निर्णयों और कार्यों पर बहुत अधिक निर्भर करता है। भारत प्लांट जेनेटिक्स (plant genetics) संसाधनों की संपदा को साझा करने का एक कट्टर समर्थक रहा है। राष्ट्रीय जीन बैंकों (national gene banks) पर निगाहें डालें तो पता चलता है कि लगभग 10 फीसदी जर्मप्लाज्म (germplasm) भारतीय मूल के हैं। हमारी सोच बिल्कुल स्पष्ट है कि पौधों के जेनेटिक संसाधनों को रिसर्च और लगातार उपयोग के लिए उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
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आईटीपीजीआरएफए की गवर्निंग बॉडी सम्मेलन
कृषि मंत्री सोमवार को दिल्ली में आयोजित प्लांट जेनेटिक्स संसाधनों पर अंतरराष्ट्रीय संधि (international treaty on plant genetics resources) (ITPGRFA) की गवर्निंग बॉडी के नौवें सत्र (जीबी-9) को संबोधित कर रहे थे। भारत पहली बार इस सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है। यह सम्मेलन 24 सितंबर तक चलेगा। यह संधि एक बाध्यकारी समझौता है, जो 29 जून 2004 से प्रभावी हुआ है। वर्तमान में इसमें भारत सहित 149 पक्ष हैं। इसके जरिए किसानों के अधिकारों की रक्षा की जा रही है।
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भारत बहुपक्षीय समझौते की प्रतिबद्धताओं पर अपने विश्वास और कार्यों में दृढ़ है
तोमर ने कहा कि हम समय के साथ प्लांट जेनेटिक्स संसाधनों के संरक्षण और चयन में किसानों, स्वदेशी समुदायों, आदिवासी आबादी और विशेष रूप से समुदाय की महिलाओं के योगदान को नजरअंदाज नहीं कर सकते। इसलिए, प्लांट जेनेटिक्स संसाधन संधि (आईटीपीजीएफआरए) में संशोधन और सुधार पर विचार करते समय उनके हितों को ध्यान में रखना हमारा कर्तव्य है। भारत बहुपक्षीय समझौते की प्रतिबद्धताओं पर अपने विश्वास और कार्यों में दृढ़ है। आईटीपीजीएफआरए का अनुच्छेद 9 किसानों के अधिकारों से संबंधित है। जिसका भारत पूर्ण रूप से पालन करता है। देश के 66 किसानों और कृषि समुदायों को प्लांट जीनोम सेवियर अवार्ड्स (Plant Genome Savior Awards) से सम्मानित किया है।
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प्लांट जेनेटिक्स संसाधन प्रजनन चुनौतियों के समाधान का स्रोत
केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि प्लांट जेनेटिक्स संसाधन प्रजनन चुनौतियों के समाधान का स्रोत हैं। मूल उत्पत्ति वाले स्थान के विनाश और जलवायु परिवर्तन के कारण प्लांट जेनेटिक रिसोर्स कमजोर हैं। उनका संरक्षण मानवता की साझा जिम्मेदारी है। हमें इन्हें संरक्षित करने के लिए सभी आधुनिक टेक्नोलॉजी के साथ-साथ पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करना चाहिए। वैश्विक कृषि अनुसंधान स्पष्ट कारणों से कुछ प्रमुख फसलों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
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हमें वर्ष-दर-वर्ष भरपूर फसल उत्पादन सुनिश्चित करने की आवश्यकता
उद्घाटन सत्र में तोमर ने कहा कि प्लांट जेनेटिक्स संधि का उद्देश्य फसलों की विविधता में किसानों और स्थानीय समुदायों के योगदान को मान्यता देना है। सदियों से, जनजातीय व पारंपरिक कृषक समुदायों ने अपने पास उपलब्ध समृद्ध आनुवंशिक सामग्री के आयामों का निरंतर समायोजन किया है। उन्हें आकार दिया है। कोविड महामारी ने हमें कुछ सबक सिखाए हैं। भोजन की उपलब्धता व पहुंच, स्थिरता- शांति के लिए सर्वोपरि है। भारत नागरिकों के लिए खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के प्रति प्रतिबद्ध रहा है। हमें वर्ष-दर-वर्ष भरपूर फसल उत्पादन सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। इसका उत्तर फसल विविधता व विविधीकरण है।
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किसानों के अधिकारों से समझौता नहीं
तोमर ने कहा कि खाद्य सुरक्षा की कीमत पर कोई बातचीत संभव नहीं है। सभी अंतरराष्ट्रीय मंचों को यह नहीं भूलना चाहिए कि भोजन अत्यावश्यक मौलिक अधिकार है। विकासशील देश यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता से प्रेरित होंगे कि खाद्य उत्पादन करने वाले किसानों के अधिकारों से कभी समझौता न किया जाए। यह समुदाय प्लांट जेनेटिक्स संसाधनों के अस्तित्व के लिए भी जिम्मेदार है, जो आज हमारे पास हैं। हमारे पास दुनियाभर में ऐसी कई जगह और ऐसे कई लोग हैं, जिन्होंने अमूल्य जेनेटिक संसाधनों और बहुमूल्य पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण किया है।
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इस मौके पर कृषि सचिव मनोज आहूजा, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डॉ। हिमांशु पाठक, जीबी-9 ब्यूरो की अध्यक्ष यास्मीना अल-बहलौल, यूएन के समन्वयक शोम्बी शार्प, कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिव अश्विवनी कुमार और जीबी-9 के महासचिव केंट नेन्डोजे सहित कृषि क्षेत्र की कई हस्तियां मौजूद रहीं।