टीकमगढ़, कृषि विज्ञान केंद्र टीकमगढ़ के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ बी.एस. किरार डॉ. आर.के. प्रजापति डॉ. एस.के. सिंह डॉ. आई.डी. सिंह एवं जयपाल छिगारहा द्वारा विगत दिवस जलवायु समुत्थानुशील कृषि पर राष्ट्रीय नवाचार अंतर्गत अंगीकृत गांव कोडिया में कृषक प्रशिक्षण में खरीफ पडत भूमि तोरिया की खेती करने की तकनीकी जानकारी दी गई । तोरिया के दानों में 40-42% तेल पाया जाता है । प्रशिक्षण में वैज्ञानिको ने बताया कि खरीफ के मौसम में शुरू में बर्षा कम एवं देर से होने पर जिले में अधिकांश गांवों में 10 – 15% रकवा में फसल की बुवाई नहीं हो पाई है ।
ऐसी स्थिति में किसान भाई उन खेतों में तोरियां जो सरसों की कम अवधि की फसल होती है इसे सितंबर में प्रथम सप्ताह से तीसरे सप्ताह तक बुवाई कर सकते हैं । तोरिया की फसल 70-80 दिन में पक कर तैयार हो जाती है उसके बाद नवंबर के अंतिम सप्ताह से दिसंबर के प्रथम सप्ताह तक गेहूं एवं जौ की बुवाई कर अधिक लाभ कमा सकते हैं । तोरिया की उन्नत किस्में जवाहर तोरिया-1 भवानी, टाइप-9 आदि किस्मों का बीज बुवाई के लिए उपयुक्त है ।
तोरिया का बीज छोटा होता है इसलिए 1 एकड़ में 1 – 1.5 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है बीज बुवाई से पहले फफूंद जनित रोगों से बचाने के लिए कार्बेंडाजिम ़ मैनकोजेब 2 ग्राम या कार्बेंडाजिम 1 ग्राम प्रति ग्राम बीज की दर से उपचार कर सीडड्रिल से कतार में बुवाई करें । कतार से कतार की दूरी 40-45 सेंटीमीटर रखना चाहिए बुवाई के समय आधार रूप से 25 किलोग्राम यूरिया, 125 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 10-12 किलोग्राम म्युरेट ऑफ पोटाश प्रति एकड़ अवश्य देना चाहिए । तोरिया की फसल भूमि के अनुसार 1 – 2 सिंचाई में तैयार हो जाती है । किसान भाई खरीफ की पडत भूमि पर तोरिया की कम अवधि फसल लगाकर खरीफ एवं रबी मौसम में अतिरिक्त उत्पादन कर अपनी आमदानी बढ़ा सकते हैं और उपलब्ध संसाधनों का भी भरपूर फायदा उठा सकते हैं ।