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वर्षा ऋतु में बछड़ों की देखभाल एवं प्रबंधन

डॉ. अभिलाषा सिंह, सुलोचना सेन

डॉ सुमन संत, डॉ. अनीता तेवारी

डॉ. निष्ठा कुशवाह
पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, रीवा

परिचय
बछड़े किसी भी डेयरी या पशुपालन व्यवसाय की नींव होते हैं। वर्षा ऋतु एक ओर जहां पशुपालकों के लिए हरियाली और चारे की बहुलता लाती है, वहीं दूसरी ओर यह बछड़ों के स्वास्थ्य एवं प्रबंधन के दृष्टिकोण से कई चुनौतियां भी उत्पन्न करती है। वर्षा ऋतु में मौसम की नमी, तापमान में अस्थिरता, कीचड़, जलभराव एवं परजीवियों की सक्रियता के कारण बछड़ों के बीमार होने की संभावना अधिक हो जाती है। इस मौसम में यदि उचित देखभाल न की जाए, तो बछड़ों की मृत्यु दर बढ़ सकती है। अतः इस ऋतु में बछड़ों की उचित देखभाल एवं प्रबंधन अत्यंत आवश्यक है।

बछड़ों के लिए वर्षा ऋतु में मुख्य सावधानियां:

  1. आवास प्रबंधन (Housing Management)
    वर्षा ऋतु में बछड़े अत्यधिक नमी, कीचड़, ठंडे मौसम और संक्रमण की चपेट में जल्दी आ जाते हैं। इस अवस्था में उनका प्रतिरोधक तंत्र कमजोर होता है, जिससे वे आसानी से दस्त, निमोनिया, त्वचा रोग, या परजीवी संक्रमण के शिकार हो सकते हैं। अतः उनका सुरक्षित, सूखा एवं स्वच्छ आवास अत्यंत आवश्यक होता है।
  2. प्रमुख बातें:
  3. ऊँचा और जलनिकासी युक्त स्थान चुना जाए
    बछड़ों को ऐसे स्थान पर रखा जाना चाहिए जहाँ वर्षा का पानी जमा न हो। भूमि में ढलान हो ताकि पानी स्वतः बह जाए।
  4. शेड की बनावट
    बछड़ों के लिए अलग शेड बनाएं जो हवादार हो लेकिन वर्षा से सुरक्षित हो। छत का ढलान ऐसा हो कि पानी नीचे गिरकर बाहर निकल जाए। दीवारें ठोस हों लेकिन हवा के आवागमन के लिए खिड़कियाँ रहें।
  5. फर्श की स्थिति
  6. फर्श पक्का या कच्चा लेकिन ऊँचा और जल सोखने वाला होना चाहिए। फर्श पर फिसलन नहीं होनी चाहिए ताकि बछड़े चोटिल न हों।
  7. बिछावन की व्यवस्था (Bedding)
  8. बिछावन के लिए सूखी भूसी, लकड़ी की बुरादे या पुआल का प्रयोग करें।
    गीले या गंदे बिछावन को प्रतिदिन बदला जाए।
    बिछावन को धूप में सुखाकर पुनः उपयोग करें।
    स्वच्छता बनाए रखें
    बछड़े के आस-पास की जगह रोजाना साफ की जाए।
    गोबर, पेशाब और चारे के अवशेषों को हटाकर कीट-मक्खियों से बचाव करें।
    मच्छर एवं परजीवी नियंत्रण
    नमी वाले स्थान पर मच्छरों और जूं-टिक की वृद्धि तेज होती है। शेड में नीम के पत्ते, नीम का तेल, या अनुमोदित कीटनाशकों का छिड़काव करें।
    आइसोलेशन व्यवस्था (Isolation Pen)
    बीमार बछड़ों को बाकी बछड़ों से अलग रखें ताकि संक्रमण न फैले।
    प्राकृतिक धूप का लाभ उठाएं
    जहाँ तक संभव हो, बछड़ों को रोजाना कुछ घंटे खुली धूप में रखें ताकि त्वचा व हड्डियाँ स्वस्थ रहें और रोग प्रतिरोधकता बढ़े।
    बिजली और प्रकाश व्यवस्था
    यदि बिजली की सुविधा हो तो रात के समय हल्की रोशनी रखें ताकि कीट-मक्खी नियंत्रण हो सके और आपातकालीन स्थिति में निरीक्षण किया जा सके।
  9. पोषण प्रबंधन (Feeding Management)
    वर्षा ऋतु में बछड़ों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए उनके आहार प्रबंधन पर विशेष ध्यान देना आवश्यक होता है। इस मौसम में नमी और तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण चारे में फफूंद लगने, किण्वन होने और संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है, जिससे बछड़ों में दस्त, अपच, गैस, कुपोषण और प्रतिरोधक क्षमता में गिरावट देखी जाती है। बछड़े पशुपालन व्यवसाय की नींव होते हैं अतः उनको संतुलित व स्वच्छ आहार देना बहुत जरूरी है।
  10. नवजात बछड़ों के लिए:
    कोलोस्ट्रम (Colostrum) देना:
    बछड़े के जन्म के बाद का पहला 24 घंटा उसके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय होता है। इस अवधि में नवजात बछड़े को जो आहार सबसे पहले दिया जाता है, वह होता है – कोलोस्ट्रम जिसे हिंदी में पहला दूध या जिराव दूध भी कहा जाता है। कोलोस्ट्रम सामान्य दूध से बिल्कुल अलग होता है। यह गाढ़ा, पीला और पोषक तत्वों, रोग-प्रतिरोधक तत्वों (इम्युनोग्लोब्युलिन) एवं विटामिन्स से भरपूर होता है।
  11. कोलोस्ट्रम के प्रमुख लाभ:
    रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है:
    कोलोस्ट्रम में इम्युनोग्लोब्युलिन (IgG, IgA, IgM) जैसे तत्व होते हैं, जो बछड़े के शरीर में बैक्टीरिया, वायरस और संक्रमण से लड़ने की शक्ति प्रदान करते हैं।
    नवजात बछड़े का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है, उसे यह प्रतिरक्षा कोलोस्ट्रम से ही मिलती है।
    पाचन क्रिया को सुधारता है:
    कोलोस्ट्रम में एंजाइम्स होते हैं जो बछड़े के पाचन तंत्र को सक्रिय करते हैं और दस्त (Scours) से बचाते हैं।
  12. ऊर्जा का मुख्य स्रोत है:
    जन्म के तुरंत बाद बछड़े को ऊर्जावान बनाए रखने के लिए कोलोस्ट्रम में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन, वसा और कार्बोहाइड्रेट होते हैं।
  13. आंतरिक अंगों के विकास में सहायक:
    कोलोस्ट्रम में ग्रोथ फैक्टर (Growth Factors) होते हैं जो आंतों, मांसपेशियों और त्वचा के विकास में मदद करते हैं।
  14. कुपोषण एवं मृत्यु दर में कमी:
    समय पर कोलोस्ट्रम पिलाने से बछड़े में कुपोषण, संक्रमण और प्रारंभिक मृत्यु की संभावना बहुत कम हो जाती है।
    नोट: बछड़े की आंतें जन्म के बाद केवल पहले 24 घंटे तक ही इम्युनोग्लोब्युलिन को शोषित कर सकती हैं। इसके बाद कोलोस्ट्रम का प्रभाव कम हो जाता है।
    मात्रा:
    जन्म के 1 घंटे के भीतर कोलोस्ट्रम पिलाना अनिवार्य है। पहले 24 घंटे में शरीर के वजन का 10–15% 2–3 खुराकों में देना चाहिए।
    जन्म के बाद पहले 3 दिनों तक शरीर के वजन के अनुसार 10-15% कोलोस्ट्रम देना चाहिए।
    कोलोस्ट्रम बछड़े के लिए “जीवन रक्षक अमृत” के समान है। यदि बछड़े को समय पर और पर्याप्त मात्रा में कोलोस्ट्रम दिया जाए तो वह स्वस्थ, तेज़ी से बढ़ने वाला और भविष्य में अधिक उत्पादन करने वाला पशु बनता है। पशुपालकों को चाहिए कि वे इसे हल्के में न लें, और कोलोस्ट्रम पिलाना पशु प्रबंधन की पहली जिम्मेदारी समझें।
    1 सप्ताह से ऊपर के बछड़ों के लिए:
    दूध पिलाना:
    बछड़े को सुबह-शाम दूध दें। दूध के बर्तन की स्वच्छता अनिवार्य है।
    दुधिया आहार (Milk Replacer):
    यदि प्राकृतिक दूध उपलब्ध न हो तो गुणवत्तायुक्त दूध बदली आहार का उपयोग किया जा सकता है।
    सूखा चारा (Dry Forage):
    2-3 सप्ताह की उम्र से सूखे व अच्छे गुणवत्ता वाले चारे जैसे सूखी घास की शुरुआत करें।
    स्टार्टर फीड:
    1-2 सप्ताह की उम्र से ही बछड़े को बछड़ा स्टार्टर देना शुरू करें जो ऊर्जा, प्रोटीन, खनिज और विटामिन से भरपूर हो।
    साफ पानी की उपलब्धता:
    वर्षा ऋतु में भी बछड़े को ताजा और स्वच्छ पानी पिलाना जरूरी है। गंदा पानी दस्त व अन्य रोगों का कारण बनता है।
    खाद्य सामग्री की सुरक्षा:
    चारा व स्टार्टर फीड को सूखे और कीट-मुक्त स्थान पर रखें ताकि फफूंद न लगे।
  15. स्वास्थ्य एवं स्वच्छता प्रबंधन
    टीकाकरण एवं कृमिनाशन:
    पशु चिकित्सक की सलाह से बछड़ों का नियमित टीकाकरण करें। कृमिनाशक दवाएं 30-45 दिनों पर दें।
    संक्रमण से सुरक्षा:
    वर्षा ऋतु में दस्त, निमोनिया, कॉक्सीडियोसिस जैसी समस्याएं आम होती हैं। बछड़े की गतिविधियों और मल पर नियमित निगरानी रखें।
    बाहरी परजीवियों से सुरक्षा:
    मक्खी, मच्छर, जूं आदि की रोकथाम के लिए शेड के आस-पास की सफाई करें एवं नीम तेल या अनुमोदित कीटनाशक का छिड़काव करें।
    नियमित स्वास्थ्य निरीक्षण:
    आँखों, कान, नाक, मल, वजन और त्वचा की स्थिति पर निगरानी रखें।
    प्रबंधन सारांश तालिका:

प्रबंधन क्षेत्र सावधानियाँ / सुझाव

आवास सूखा, साफ, हवादार, जलनिकासी
चारा व पानी ताजा, स्वच्छ, फफूंदी रहित
बिछावन सूखा, नियमित बदला हुआ
टीकाकरण समय पर, पशु चिकित्सक से सलाह
कृमिनाशन हर 30-45 दिन में
बर्तन की सफाई प्रतिदिन
बछड़े का निरीक्षण प्रतिदिन सुबह-शाम

निष्कर्ष

वर्षा ऋतु में बछड़ों की देखभाल में थोड़ी सी लापरवाही स्वास्थ्य पर भारी पड़ सकती है। यदि पशुपालक साफ-सुथरा एवं सूखा आवास, संतुलित एवं सुरक्षित आहार, तथा नियमित स्वच्छता व चिकित्सा प्रबंधन अपनाते हैं, तो बछड़े स्वस्थ रहेंगे।याद रखें, स्वस्थ बछड़े ही भविष्य के उत्पादक पशु बनते हैं।

वर्षा ऋतु में बछड़ों की देखभाल एवं प्रबंधन

डॉ. अभिलाषा सिंह, सुलोचना सेन

डॉ सुमन संत, डॉ. अनीता तेवारी

डॉ. निष्ठा कुशवाह
पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, रीवा

परिचय
बछड़े किसी भी डेयरी या पशुपालन व्यवसाय की नींव होते हैं। वर्षा ऋतु एक ओर जहां पशुपालकों के लिए हरियाली और चारे की बहुलता लाती है, वहीं दूसरी ओर यह बछड़ों के स्वास्थ्य एवं प्रबंधन के दृष्टिकोण से कई चुनौतियां भी उत्पन्न करती है। वर्षा ऋतु में मौसम की नमी, तापमान में अस्थिरता, कीचड़, जलभराव एवं परजीवियों की सक्रियता के कारण बछड़ों के बीमार होने की संभावना अधिक हो जाती है। इस मौसम में यदि उचित देखभाल न की जाए, तो बछड़ों की मृत्यु दर बढ़ सकती है। अतः इस ऋतु में बछड़ों की उचित देखभाल एवं प्रबंधन अत्यंत आवश्यक है।

बछड़ों के लिए वर्षा ऋतु में मुख्य सावधानियां:

  1. आवास प्रबंधन (Housing Management)
    वर्षा ऋतु में बछड़े अत्यधिक नमी, कीचड़, ठंडे मौसम और संक्रमण की चपेट में जल्दी आ जाते हैं। इस अवस्था में उनका प्रतिरोधक तंत्र कमजोर होता है, जिससे वे आसानी से दस्त, निमोनिया, त्वचा रोग, या परजीवी संक्रमण के शिकार हो सकते हैं। अतः उनका सुरक्षित, सूखा एवं स्वच्छ आवास अत्यंत आवश्यक होता है।
  2. प्रमुख बातें:
  3. ऊँचा और जलनिकासी युक्त स्थान चुना जाए
    बछड़ों को ऐसे स्थान पर रखा जाना चाहिए जहाँ वर्षा का पानी जमा न हो। भूमि में ढलान हो ताकि पानी स्वतः बह जाए।
  4. शेड की बनावट
    बछड़ों के लिए अलग शेड बनाएं जो हवादार हो लेकिन वर्षा से सुरक्षित हो। छत का ढलान ऐसा हो कि पानी नीचे गिरकर बाहर निकल जाए। दीवारें ठोस हों लेकिन हवा के आवागमन के लिए खिड़कियाँ रहें।
  5. फर्श की स्थिति
  6. फर्श पक्का या कच्चा लेकिन ऊँचा और जल सोखने वाला होना चाहिए। फर्श पर फिसलन नहीं होनी चाहिए ताकि बछड़े चोटिल न हों।
  7. बिछावन की व्यवस्था (Bedding)
  8. बिछावन के लिए सूखी भूसी, लकड़ी की बुरादे या पुआल का प्रयोग करें।
    गीले या गंदे बिछावन को प्रतिदिन बदला जाए।
    बिछावन को धूप में सुखाकर पुनः उपयोग करें।
    स्वच्छता बनाए रखें
    बछड़े के आस-पास की जगह रोजाना साफ की जाए।
    गोबर, पेशाब और चारे के अवशेषों को हटाकर कीट-मक्खियों से बचाव करें।
    मच्छर एवं परजीवी नियंत्रण
    नमी वाले स्थान पर मच्छरों और जूं-टिक की वृद्धि तेज होती है। शेड में नीम के पत्ते, नीम का तेल, या अनुमोदित कीटनाशकों का छिड़काव करें।
    आइसोलेशन व्यवस्था (Isolation Pen)
    बीमार बछड़ों को बाकी बछड़ों से अलग रखें ताकि संक्रमण न फैले।
    प्राकृतिक धूप का लाभ उठाएं
    जहाँ तक संभव हो, बछड़ों को रोजाना कुछ घंटे खुली धूप में रखें ताकि त्वचा व हड्डियाँ स्वस्थ रहें और रोग प्रतिरोधकता बढ़े।
    बिजली और प्रकाश व्यवस्था
    यदि बिजली की सुविधा हो तो रात के समय हल्की रोशनी रखें ताकि कीट-मक्खी नियंत्रण हो सके और आपातकालीन स्थिति में निरीक्षण किया जा सके।
  9. पोषण प्रबंधन (Feeding Management)
    वर्षा ऋतु में बछड़ों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए उनके आहार प्रबंधन पर विशेष ध्यान देना आवश्यक होता है। इस मौसम में नमी और तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण चारे में फफूंद लगने, किण्वन होने और संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है, जिससे बछड़ों में दस्त, अपच, गैस, कुपोषण और प्रतिरोधक क्षमता में गिरावट देखी जाती है। बछड़े पशुपालन व्यवसाय की नींव होते हैं अतः उनको संतुलित व स्वच्छ आहार देना बहुत जरूरी है।
  10. नवजात बछड़ों के लिए:
    कोलोस्ट्रम (Colostrum) देना:
    बछड़े के जन्म के बाद का पहला 24 घंटा उसके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय होता है। इस अवधि में नवजात बछड़े को जो आहार सबसे पहले दिया जाता है, वह होता है – कोलोस्ट्रम जिसे हिंदी में पहला दूध या जिराव दूध भी कहा जाता है। कोलोस्ट्रम सामान्य दूध से बिल्कुल अलग होता है। यह गाढ़ा, पीला और पोषक तत्वों, रोग-प्रतिरोधक तत्वों (इम्युनोग्लोब्युलिन) एवं विटामिन्स से भरपूर होता है।
  11. कोलोस्ट्रम के प्रमुख लाभ:
    रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है:
    कोलोस्ट्रम में इम्युनोग्लोब्युलिन (IgG, IgA, IgM) जैसे तत्व होते हैं, जो बछड़े के शरीर में बैक्टीरिया, वायरस और संक्रमण से लड़ने की शक्ति प्रदान करते हैं।
    नवजात बछड़े का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है, उसे यह प्रतिरक्षा कोलोस्ट्रम से ही मिलती है।
    पाचन क्रिया को सुधारता है:
    कोलोस्ट्रम में एंजाइम्स होते हैं जो बछड़े के पाचन तंत्र को सक्रिय करते हैं और दस्त (Scours) से बचाते हैं।
  12. ऊर्जा का मुख्य स्रोत है:
    जन्म के तुरंत बाद बछड़े को ऊर्जावान बनाए रखने के लिए कोलोस्ट्रम में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन, वसा और कार्बोहाइड्रेट होते हैं।
  13. आंतरिक अंगों के विकास में सहायक:
    कोलोस्ट्रम में ग्रोथ फैक्टर (Growth Factors) होते हैं जो आंतों, मांसपेशियों और त्वचा के विकास में मदद करते हैं।
  14. कुपोषण एवं मृत्यु दर में कमी:
    समय पर कोलोस्ट्रम पिलाने से बछड़े में कुपोषण, संक्रमण और प्रारंभिक मृत्यु की संभावना बहुत कम हो जाती है।
    नोट: बछड़े की आंतें जन्म के बाद केवल पहले 24 घंटे तक ही इम्युनोग्लोब्युलिन को शोषित कर सकती हैं। इसके बाद कोलोस्ट्रम का प्रभाव कम हो जाता है।
    मात्रा:
    जन्म के 1 घंटे के भीतर कोलोस्ट्रम पिलाना अनिवार्य है। पहले 24 घंटे में शरीर के वजन का 10–15% 2–3 खुराकों में देना चाहिए।
    जन्म के बाद पहले 3 दिनों तक शरीर के वजन के अनुसार 10-15% कोलोस्ट्रम देना चाहिए।
    कोलोस्ट्रम बछड़े के लिए “जीवन रक्षक अमृत” के समान है। यदि बछड़े को समय पर और पर्याप्त मात्रा में कोलोस्ट्रम दिया जाए तो वह स्वस्थ, तेज़ी से बढ़ने वाला और भविष्य में अधिक उत्पादन करने वाला पशु बनता है। पशुपालकों को चाहिए कि वे इसे हल्के में न लें, और कोलोस्ट्रम पिलाना पशु प्रबंधन की पहली जिम्मेदारी समझें।
    1 सप्ताह से ऊपर के बछड़ों के लिए:
    दूध पिलाना:
    बछड़े को सुबह-शाम दूध दें। दूध के बर्तन की स्वच्छता अनिवार्य है।
    दुधिया आहार (Milk Replacer):
    यदि प्राकृतिक दूध उपलब्ध न हो तो गुणवत्तायुक्त दूध बदली आहार का उपयोग किया जा सकता है।
    सूखा चारा (Dry Forage):
    2-3 सप्ताह की उम्र से सूखे व अच्छे गुणवत्ता वाले चारे जैसे सूखी घास की शुरुआत करें।
    स्टार्टर फीड:
    1-2 सप्ताह की उम्र से ही बछड़े को बछड़ा स्टार्टर देना शुरू करें जो ऊर्जा, प्रोटीन, खनिज और विटामिन से भरपूर हो।
    साफ पानी की उपलब्धता:
    वर्षा ऋतु में भी बछड़े को ताजा और स्वच्छ पानी पिलाना जरूरी है। गंदा पानी दस्त व अन्य रोगों का कारण बनता है।
    खाद्य सामग्री की सुरक्षा:
    चारा व स्टार्टर फीड को सूखे और कीट-मुक्त स्थान पर रखें ताकि फफूंद न लगे।
  15. स्वास्थ्य एवं स्वच्छता प्रबंधन
    टीकाकरण एवं कृमिनाशन:
    पशु चिकित्सक की सलाह से बछड़ों का नियमित टीकाकरण करें। कृमिनाशक दवाएं 30-45 दिनों पर दें।
    संक्रमण से सुरक्षा:
    वर्षा ऋतु में दस्त, निमोनिया, कॉक्सीडियोसिस जैसी समस्याएं आम होती हैं। बछड़े की गतिविधियों और मल पर नियमित निगरानी रखें।
    बाहरी परजीवियों से सुरक्षा:
    मक्खी, मच्छर, जूं आदि की रोकथाम के लिए शेड के आस-पास की सफाई करें एवं नीम तेल या अनुमोदित कीटनाशक का छिड़काव करें।
    नियमित स्वास्थ्य निरीक्षण:
    आँखों, कान, नाक, मल, वजन और त्वचा की स्थिति पर निगरानी रखें।
    प्रबंधन सारांश तालिका:

प्रबंधन क्षेत्र सावधानियाँ / सुझाव

आवास सूखा, साफ, हवादार, जलनिकासी
चारा व पानी ताजा, स्वच्छ, फफूंदी रहित
बिछावन सूखा, नियमित बदला हुआ
टीकाकरण समय पर, पशु चिकित्सक से सलाह
कृमिनाशन हर 30-45 दिन में
बर्तन की सफाई प्रतिदिन
बछड़े का निरीक्षण प्रतिदिन सुबह-शाम

निष्कर्ष

वर्षा ऋतु में बछड़ों की देखभाल में थोड़ी सी लापरवाही स्वास्थ्य पर भारी पड़ सकती है। यदि पशुपालक साफ-सुथरा एवं सूखा आवास, संतुलित एवं सुरक्षित आहार, तथा नियमित स्वच्छता व चिकित्सा प्रबंधन अपनाते हैं, तो बछड़े स्वस्थ रहेंगे।याद रखें, स्वस्थ बछड़े ही भविष्य के उत्पादक पशु बनते हैं।

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