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मप्र में खेती का बढ़ा रकबा, उत्पादन में रुतबा बरकरार

केंद्रीय की रिपोर्ट मप्र में 41 वर्ग किमी कृषि भूमि बढ़ी 

उपलब्धि: मप्र में कृषि भूमि के साथ ही उत्पादन बढ़ा

हैरत की बात: मात्र 2 स्क्वायर किमी क्षेत्र चरनोई

भोपाल, भारत में कृषि को अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। आज भी देश की 60 फीसदी ग्रामीण आबादी अपनी जीविका के लिए कृषि पर ही निर्भर है। जबकि यदि किसानों की बात करें तो देश के 82 फीसदी किसान छोटे और सीमांत हैं। ऐसे में फसल उनके लिए कितनी मायने रखती है वो बताने की जरुरत नहीं है। लेकिन विसंगति यह है कि मप्र को छोड़कर देशभर में कृषि भूमि लगातार घट रही है। केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में 4 वर्ष में 49,051 वर्ग किमी कृषि भूमि घटी है। वहीं इस दौरान मप्र में 41 वर्ग किमी कृषि भूमि बढ़ी है। देश में कृषि भूमि में 49,051 वर्ग किलोमीटर की कमी आई है। इन आंकड़ों से अनुमान लगाया जा रहा है कि 2015-16 के बाद और तेजी से कृषि भूमि घटी है। लेकिन मप्र के लिए सुखद संकेत यह है कि यहां खेती का रकबा लगातार बढ़ता जा रहा है। मप्र सरकार की नीतियों के कारण खेती के प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ा है। गौरतलब है कि मप्र अनाज के अधिक उत्पादन और उपार्जन में लगातार नए रिकॉर्ड बना रहा है। इस कारण प्रदेश को पांच बार कृषि कर्मण अवार्ड मिल चुका है।

सुखद: प्रदेश में खेती-किसानी के प्रति लोगों का उत्साह बढ़ा 

मध्यप्रदेश में 1,88,139 वर्ग किमी कृषि भूमि

क्षेत्रफल के मामले में मप्र देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है। मप्र में कुल 238252 वर्ग किमी भू-भाग है। 2011-12 में प्रदेश में 1,88,098 वर्ग किमी में खेती की जाती थी। जो अब बढ़कर 1,88,139 वर्ग किमी हो गई है। यह इस बात का संकेत है कि प्रदेश में खेती-किसानी के प्रति लोगों का उत्साह बढ़ा है। वर्तमान में प्रदेश में कुल परती भूमि 24,854 वर्ग किमी है। जबकि 5,722 किमी में रहवासी क्षेत्र हंै, जहां आवास, दफ्तर, उद्योग या अन्य निमार्ण हुए हैं। वहीं 80,617 स्क्वायर किमी में वन क्षेत्र है। वहीं गीली और पानी वाली भूमि 8,919 स्क्वायर किमी है। हैरानी की बात यह है कि प्रदेश में मात्र 2 स्क्वायर किमी क्षेत्र चरनोई है। प्रदेश में चरनाई भूमि का बड़े स्तर पर अतिक्रमण हुआ है और लोग उसे खेत में बदलकर कृषि कार्य कर रहे हैं।

अन्य राज्यों के लिए नजीर बना मप्र 

देश में जहां एक तरफ कृषि भूमि घट रही है, वहीं मप्र में साल दर साल खेती का रकबा बढ़ रहा है। वह भी तब जब मप्र में शहरीकरण तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में मप्र देश के अन्य राज्यों के लिए नजीर बन सकता है। साथ ही देश के लिए जरुरी हो जाता है कि सरकार देश में कृषि भूमि को संरक्षण प्रदान करे साथ ही उसका पूरी तरह से उपयोग किया जाए यह भी सुनिश्चित करे। 

जलस्रोतों के क्षेत्रफल में कमी

रिपोर्ट के अनुसार जो भूमि जंगलों के रूप में वर्गीकृत है उसमें भी कमी आई है। आंकड़ों के अनुसार जहां 2011-12 में 7,25,543 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर जंगल थे वो 2015-16 तक 7,914 वर्ग किलोमीटर घटकर 7,17,629 वर्ग किलोमीटर में ही सिमट गए थे। जबकि इंडिया स्टेट ऑफ फारेस्ट रिपोर्ट 2019 के अनुसार 24.56 फीसदी भू-भाग पर जंगल थे। जबकि यदि देश में घास और चराई स्थल की बात करें तो उसमें भी कमी आई है। इसका विस्तार 25,397 से घटकर 23,551 वर्ग किलोमीटर का रह गया है। जबकि दूसरी ओर देश में बर्फ और ग्लेशियर के क्षेत्र में वृद्धि हुई है।  

जैविक खेती और जैविक खाद को बढ़ावा 

मप्र में भी भूमि की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है। ऐसे में सरकार जैविक खेती और जैविक खाद को बढ़ावा दे रही है। यही नहीं प्रदेश में कृषि भूमि का बढ़ाने के लिए चंबल के बीहड़ को खेती के लिए तैयारी करने की तैयारी चल रही है। विश्व बैंक की मदद से चंबल के बीहड़ों के समतलीकरण और इसे कृषि योग्य बनाने के लिए केंद्रीय कृषि मंत्रालय और मप्र सरकार के बीच पिछले दिनों संभावनाओं की तलाश में मीटिंग हुई। जुलाई के अंतिम सप्ताह में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने विश्व बैंक के वरिष्ठ प्रतिनिधि और राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ संयुक्त बैठक में ग्वालियर-चंबल संभाग की 3 लाख हेक्टेयर परती बीहड़ भूमि हेतु जिस प्लान के लिए समझदारी विकसित हुई है। 

मप्र में भूमि (स्क्वायर किमी)

कृषि भूमि 183563
परती 4173
पौधरोपण  402
बंजर पहाड़ी 380
रेवीनस लैंड 1491
रद्दी भूमि 22983
माइनिंग  474
रूलर  3190
अर्बन  2057
वन भूमि 80617
चरनोई 02
नदी क्षेत्र  3205
जल निकाय भूमि  5714

प्रदेश में कृषि भूमि बढ़ी 

मप्र की अर्थव्यवस्था का मुख्य सहारा कृषि है और यही एक मात्र ऐसा क्षेत्र है जो राज्य की ग्रामीण आबादी को बड़ी संख्या में रोजगार मुहैया कराने के साथ जीविका उपार्जन का विकल्प देता है। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक मप्र में जीविकोपार्जन के लिए कुल कामकाजी लोगों के 69.8 फीसदी और ग्रामीण इलाकों में कुल कामकाजी लोगों के 85.6 फीसदी कृषि पर आश्रित थे। इसमें 31.2 फीसदी किसान और 38.6 फीसदी खेतीहर मजदूर थे। लेकिन विसंगति यह देखिए की एक तरफ जहां प्रदेश में कृषि भूमि बढ़ी है, वहीं किसानों के खेतीहर मजदूर बनने के आंकड़े भी बढ़ हैं। 

70 लाख किसान खेतीहर मजदूर

सांख्यकीय विभाग के आंकड़ों के मुताबिक 2001 में प्रदेश में 1 करोड़ दस लाख किसान थे जो 2011 में घटकर 98 लाख हो गए। आज की स्थिति में 70 लाख हो गए हैं। वहीं खेतीहर मजदूरों की संख्या 74 लाख से बढ़कर 1 करोड़ 20 लाख हो गई है। कृषि योग्य जमीन बढ़ी है लेकिन उसके हिस्से बहुत हो गए हैं। आंकड़े दिखाते हैं कि किसान या तो खेतीहर मजदूर बन रहे हैं या फिर गांव से पलायन कर शहरों में मजदूरी का काम कर रहे हैं। प्रदेश में प्रति किसान भूमि का औसत 2 हेक्टेयर था जो अब घटकर 1.29 हेक्टेयर हो गया है। एक किसान के पास अपना परिवार के पालन पोषण के लिए ढाई से तीन एकड़ जमीन होती है जिसका उत्पादन एक परिवार के लिए पर्याप्त नहीं है।

65 लाख हेक्टेयर सिंचाई का लक्ष्य

मप्र कृषि प्रधान प्रदेश है और यहां की सारी अर्थव्यवस्था कृषि से ही चलती है। प्रदेश की 70 फीसदी से ज्यादा आबादी खेती पर निर्भर है। प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्र में 56 फीसदी जमीन पर खेती होती है। वर्तमान में प्रदेश 40 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई होती है। सरकार ने इसको बढ़ाकर अगले चार साल में 65 लाख हेक्टेयर जमीन में सिंचाई करने का लक्ष्य तय किया है। वर्ष 2011 में हुई जनगणना के आधार पर अनुमान लगाया गया था कि हर रोज लगभग 2500 किसान खेती छोड़ रहे हैं। देश के किसान परिवारों की औसत आय 20 हजार रुपए वार्षिक है। कृषि को अपना मुख्य पेशा बताने वालों की संख्या में लगातार कमी आ रही है।

‘डार्क जोन में देश के 264 जिले 

दुनिया में कुल कृषि योग्य भूमि मात्र 11 प्रतिशत है, जबकि भारत में यह 56 प्रतिशत है। दुनिया में पाई जाने वाले 64 में से 46 प्रकार की मिट्टी भारत में पाई जाती है। इसी तरह, वर्षा, सतही और भूमिगत जल के हिसाब से भी भारत काफी संपन्न है। देश में हर साल करीब 4,000 अरब घन मीटर वर्षा होती है। हालांकि हम इसका मात्र 10-15 ही उपयोग कर पाते हैं, बाकी बेकार बह जाता है। देश के कुल भू-भाग का 30 करोड़ हेक्टेयर जलाच्छादित है। देश में करीब 445 नदियां हैं, जिनकी कुल लंबाई लगभग दो लाख किलोमीटर है। एक अनुमान के अनुसार, 1947 में देश में वर्षा जल संरक्षण के लिए लगभग 28 लाख झील और पोखर थे, लेकिन आज उनकी संख्या में काफी कमी आई है।
 इसी तरह, हरित क्रांति के कारण भूमिगत जल का अत्यधिक दोहन हुआ, जिससे देश के 264 जिले ‘डार्क जोन में आ गए हैं। 

इनका कहना है
पिछले 15 साल के दौरान प्रदेश की भाजपा सरकार ने खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं क्रियान्वित किया है। इसी का परिणाम है कि प्रदेश में खेती के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है। प्रदेश में खेती लाभ का धंधा बनती जा रही है। प्रदेश सरकार की कई योजनाओं का लाभ उठाकर लोग खेती के प्रति आकर्षित हो रहे हैं। 
कमल पटेल, कृषि मंत्री

मप्र में खेती का बढ़ा रकबा, उत्पादन में रुतबा बरकरार

केंद्रीय की रिपोर्ट मप्र में 41 वर्ग किमी कृषि भूमि बढ़ी 

उपलब्धि: मप्र में कृषि भूमि के साथ ही उत्पादन बढ़ा

हैरत की बात: मात्र 2 स्क्वायर किमी क्षेत्र चरनोई

भोपाल, भारत में कृषि को अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। आज भी देश की 60 फीसदी ग्रामीण आबादी अपनी जीविका के लिए कृषि पर ही निर्भर है। जबकि यदि किसानों की बात करें तो देश के 82 फीसदी किसान छोटे और सीमांत हैं। ऐसे में फसल उनके लिए कितनी मायने रखती है वो बताने की जरुरत नहीं है। लेकिन विसंगति यह है कि मप्र को छोड़कर देशभर में कृषि भूमि लगातार घट रही है। केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में 4 वर्ष में 49,051 वर्ग किमी कृषि भूमि घटी है। वहीं इस दौरान मप्र में 41 वर्ग किमी कृषि भूमि बढ़ी है। देश में कृषि भूमि में 49,051 वर्ग किलोमीटर की कमी आई है। इन आंकड़ों से अनुमान लगाया जा रहा है कि 2015-16 के बाद और तेजी से कृषि भूमि घटी है। लेकिन मप्र के लिए सुखद संकेत यह है कि यहां खेती का रकबा लगातार बढ़ता जा रहा है। मप्र सरकार की नीतियों के कारण खेती के प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ा है। गौरतलब है कि मप्र अनाज के अधिक उत्पादन और उपार्जन में लगातार नए रिकॉर्ड बना रहा है। इस कारण प्रदेश को पांच बार कृषि कर्मण अवार्ड मिल चुका है।

सुखद: प्रदेश में खेती-किसानी के प्रति लोगों का उत्साह बढ़ा 

मध्यप्रदेश में 1,88,139 वर्ग किमी कृषि भूमि

क्षेत्रफल के मामले में मप्र देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है। मप्र में कुल 238252 वर्ग किमी भू-भाग है। 2011-12 में प्रदेश में 1,88,098 वर्ग किमी में खेती की जाती थी। जो अब बढ़कर 1,88,139 वर्ग किमी हो गई है। यह इस बात का संकेत है कि प्रदेश में खेती-किसानी के प्रति लोगों का उत्साह बढ़ा है। वर्तमान में प्रदेश में कुल परती भूमि 24,854 वर्ग किमी है। जबकि 5,722 किमी में रहवासी क्षेत्र हंै, जहां आवास, दफ्तर, उद्योग या अन्य निमार्ण हुए हैं। वहीं 80,617 स्क्वायर किमी में वन क्षेत्र है। वहीं गीली और पानी वाली भूमि 8,919 स्क्वायर किमी है। हैरानी की बात यह है कि प्रदेश में मात्र 2 स्क्वायर किमी क्षेत्र चरनोई है। प्रदेश में चरनाई भूमि का बड़े स्तर पर अतिक्रमण हुआ है और लोग उसे खेत में बदलकर कृषि कार्य कर रहे हैं।

अन्य राज्यों के लिए नजीर बना मप्र 

देश में जहां एक तरफ कृषि भूमि घट रही है, वहीं मप्र में साल दर साल खेती का रकबा बढ़ रहा है। वह भी तब जब मप्र में शहरीकरण तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में मप्र देश के अन्य राज्यों के लिए नजीर बन सकता है। साथ ही देश के लिए जरुरी हो जाता है कि सरकार देश में कृषि भूमि को संरक्षण प्रदान करे साथ ही उसका पूरी तरह से उपयोग किया जाए यह भी सुनिश्चित करे। 

जलस्रोतों के क्षेत्रफल में कमी

रिपोर्ट के अनुसार जो भूमि जंगलों के रूप में वर्गीकृत है उसमें भी कमी आई है। आंकड़ों के अनुसार जहां 2011-12 में 7,25,543 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर जंगल थे वो 2015-16 तक 7,914 वर्ग किलोमीटर घटकर 7,17,629 वर्ग किलोमीटर में ही सिमट गए थे। जबकि इंडिया स्टेट ऑफ फारेस्ट रिपोर्ट 2019 के अनुसार 24.56 फीसदी भू-भाग पर जंगल थे। जबकि यदि देश में घास और चराई स्थल की बात करें तो उसमें भी कमी आई है। इसका विस्तार 25,397 से घटकर 23,551 वर्ग किलोमीटर का रह गया है। जबकि दूसरी ओर देश में बर्फ और ग्लेशियर के क्षेत्र में वृद्धि हुई है।  

जैविक खेती और जैविक खाद को बढ़ावा 

मप्र में भी भूमि की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है। ऐसे में सरकार जैविक खेती और जैविक खाद को बढ़ावा दे रही है। यही नहीं प्रदेश में कृषि भूमि का बढ़ाने के लिए चंबल के बीहड़ को खेती के लिए तैयारी करने की तैयारी चल रही है। विश्व बैंक की मदद से चंबल के बीहड़ों के समतलीकरण और इसे कृषि योग्य बनाने के लिए केंद्रीय कृषि मंत्रालय और मप्र सरकार के बीच पिछले दिनों संभावनाओं की तलाश में मीटिंग हुई। जुलाई के अंतिम सप्ताह में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने विश्व बैंक के वरिष्ठ प्रतिनिधि और राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ संयुक्त बैठक में ग्वालियर-चंबल संभाग की 3 लाख हेक्टेयर परती बीहड़ भूमि हेतु जिस प्लान के लिए समझदारी विकसित हुई है। 

मप्र में भूमि (स्क्वायर किमी)

कृषि भूमि 183563
परती 4173
पौधरोपण  402
बंजर पहाड़ी 380
रेवीनस लैंड 1491
रद्दी भूमि 22983
माइनिंग  474
रूलर  3190
अर्बन  2057
वन भूमि 80617
चरनोई 02
नदी क्षेत्र  3205
जल निकाय भूमि  5714

प्रदेश में कृषि भूमि बढ़ी 

मप्र की अर्थव्यवस्था का मुख्य सहारा कृषि है और यही एक मात्र ऐसा क्षेत्र है जो राज्य की ग्रामीण आबादी को बड़ी संख्या में रोजगार मुहैया कराने के साथ जीविका उपार्जन का विकल्प देता है। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक मप्र में जीविकोपार्जन के लिए कुल कामकाजी लोगों के 69.8 फीसदी और ग्रामीण इलाकों में कुल कामकाजी लोगों के 85.6 फीसदी कृषि पर आश्रित थे। इसमें 31.2 फीसदी किसान और 38.6 फीसदी खेतीहर मजदूर थे। लेकिन विसंगति यह देखिए की एक तरफ जहां प्रदेश में कृषि भूमि बढ़ी है, वहीं किसानों के खेतीहर मजदूर बनने के आंकड़े भी बढ़ हैं। 

70 लाख किसान खेतीहर मजदूर

सांख्यकीय विभाग के आंकड़ों के मुताबिक 2001 में प्रदेश में 1 करोड़ दस लाख किसान थे जो 2011 में घटकर 98 लाख हो गए। आज की स्थिति में 70 लाख हो गए हैं। वहीं खेतीहर मजदूरों की संख्या 74 लाख से बढ़कर 1 करोड़ 20 लाख हो गई है। कृषि योग्य जमीन बढ़ी है लेकिन उसके हिस्से बहुत हो गए हैं। आंकड़े दिखाते हैं कि किसान या तो खेतीहर मजदूर बन रहे हैं या फिर गांव से पलायन कर शहरों में मजदूरी का काम कर रहे हैं। प्रदेश में प्रति किसान भूमि का औसत 2 हेक्टेयर था जो अब घटकर 1.29 हेक्टेयर हो गया है। एक किसान के पास अपना परिवार के पालन पोषण के लिए ढाई से तीन एकड़ जमीन होती है जिसका उत्पादन एक परिवार के लिए पर्याप्त नहीं है।

65 लाख हेक्टेयर सिंचाई का लक्ष्य

मप्र कृषि प्रधान प्रदेश है और यहां की सारी अर्थव्यवस्था कृषि से ही चलती है। प्रदेश की 70 फीसदी से ज्यादा आबादी खेती पर निर्भर है। प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्र में 56 फीसदी जमीन पर खेती होती है। वर्तमान में प्रदेश 40 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई होती है। सरकार ने इसको बढ़ाकर अगले चार साल में 65 लाख हेक्टेयर जमीन में सिंचाई करने का लक्ष्य तय किया है। वर्ष 2011 में हुई जनगणना के आधार पर अनुमान लगाया गया था कि हर रोज लगभग 2500 किसान खेती छोड़ रहे हैं। देश के किसान परिवारों की औसत आय 20 हजार रुपए वार्षिक है। कृषि को अपना मुख्य पेशा बताने वालों की संख्या में लगातार कमी आ रही है।

‘डार्क जोन में देश के 264 जिले 

दुनिया में कुल कृषि योग्य भूमि मात्र 11 प्रतिशत है, जबकि भारत में यह 56 प्रतिशत है। दुनिया में पाई जाने वाले 64 में से 46 प्रकार की मिट्टी भारत में पाई जाती है। इसी तरह, वर्षा, सतही और भूमिगत जल के हिसाब से भी भारत काफी संपन्न है। देश में हर साल करीब 4,000 अरब घन मीटर वर्षा होती है। हालांकि हम इसका मात्र 10-15 ही उपयोग कर पाते हैं, बाकी बेकार बह जाता है। देश के कुल भू-भाग का 30 करोड़ हेक्टेयर जलाच्छादित है। देश में करीब 445 नदियां हैं, जिनकी कुल लंबाई लगभग दो लाख किलोमीटर है। एक अनुमान के अनुसार, 1947 में देश में वर्षा जल संरक्षण के लिए लगभग 28 लाख झील और पोखर थे, लेकिन आज उनकी संख्या में काफी कमी आई है।
 इसी तरह, हरित क्रांति के कारण भूमिगत जल का अत्यधिक दोहन हुआ, जिससे देश के 264 जिले ‘डार्क जोन में आ गए हैं। 

इनका कहना है
पिछले 15 साल के दौरान प्रदेश की भाजपा सरकार ने खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं क्रियान्वित किया है। इसी का परिणाम है कि प्रदेश में खेती के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है। प्रदेश में खेती लाभ का धंधा बनती जा रही है। प्रदेश सरकार की कई योजनाओं का लाभ उठाकर लोग खेती के प्रति आकर्षित हो रहे हैं। 
कमल पटेल, कृषि मंत्री

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