टीकमगढ़, कृषि विज्ञान केन्द्र, टीकमगढ़ द्वारा भारतीय समवेत औषध संस्थान, जम्मू के सहयोग से जिले में नीबू और गुलाब घास की खेती के लिये कार्यक्रम चलाया जा रहा है। नबम्बर 2020 में कांटी ग्राम में 24 किसानो के यहां एक-एक एकड़ के खेत पर नीबू और गुलाब घास लगवाया गया था। आज इन घासों को प्रथम कटाई करके गांव में लगाये गये तेल निकालने वाले संयंत्र से इसका तेल निकाला गया । जिसका बाजार मूल्य 1000 से 1500 रूपये प्रति लीटर है । एक एकड़ मे लगभग 10-15 लीटर तेल प्राप्त होता है ।
तेल निकालते समय डा. आर. के. प्रजापति ( वैज्ञानिक), रमाकान्त यादव, रावेन्द्र (आई.आई.आई.एम. जम्मू) उपस्थित रहे। गावं के 25 किसान तेल निकलता देख उत्साह से भरे हुये थे । डा. बी. एस. किरार, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख, एस. के. श्रीवास्तव, उपसंचालक कृ षि, श्री सुरेष कुमार कुष्वाहा उपसंचालक उद्यानिकी द्वारा मार्गदषर्न एवं सहयोग प्राप्त करके डा. आर. के प्रजापति इस परियोजना को पूरे जिले में फैलाने के लिये प्रयास कर रहें है । डा प्रजापति ने बताया की बुन्देलखंड में कृषि अर्थव्यवस्था की रीड़ है क्योकि यहां की 75 प्रतिष्त से अधिक आबादी कृ षि और संबद्व क्षेत्रो पर निर्भर करती है । यहा की खेती कम बारिष, मिटटी की कम जलधारण क्षमता, जंगली घरेलू जानवरो के कारण फसल की बड़े पैमाने पर क्षति होती है ।
बुन्देलखण्ड क्षेत्रो की प्रमुख समस्या छोटे आकार की भूमि जोत और कृषि पूरी तरह वर्षा पर निर्भर करती है । इन क्षेत्रो में 65 – 85 प्रतिषत खेती योग्य भूमि वर्षा आधारित एवं बंजर अनुउपजाऊ के क्षेत्र है । नियमित कृषि फसले , अनाज, दाले आदि पानी की कमी के कारण संतोषजनक उपज नही दे पाती दूसरी तरफ सीमित कृषि क्षेत्र को बढ़ाया नही जा सकता । इसलिये कृषि क्षेत्र में विविधीकरण युग मे किसानो की आय बढ़ाने और राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय मांग कृषि में नीबू और गुलाब घास के तेल की बढ़ने से एवं जौखिम को पूरा करने के लिये मौजूदा कृषि प्रणाली में औषधीय और सुगन्धित पौधो की खेती अधिक उपयुक्त है ।
डा. किरार बताते है कि इन फसलो को मुख्य फसल के साथ अथवा बंजर भूमि , कम सिंचित क्षेत्र, शुष्क भूमि और वर्षा आधारित क्षेत्रो पर की जा सकती है। एस. के. श्रीवास्तव, उपसंचालक कृषि का कहना है कि इन सुगंधित फसलो की खेती इस क्षेत्र के किसानो की आय और कृषि उत्पादन के लिये एक वरदान सिद्व होगी । श्री एस. के. कुषवाहा (उपसंचालक उद्यानिकी) ने बताया की इनकी खेती जिले में शुरू होने से सुंगधित तेल के प्रसंस्करण और मूल्यसंवर्धन उद्योग तथा उद्यामिता विकास का जिले में आकर्षित करने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगी। डा. आई. डी. सिंह ने बताया कि इन फसलो में अधिक खाद उर्वरक, सिंचाई आदि लागत की जरूरत नही रहती तथा जानवरो भी इन फसलों को नही खाते है ।