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मध्यप्रदेश में दो हजार एकड़ जंगल पर चलेगी कुल्हाड़ी

केंद्र ने निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने नियम किए दरकिनार

भोपाल, देश में एक तरफ सरकार वनीकरण और हरियाली को बढ़ावा देने की योजना पर काम कर रही है, वहीं दूसरी तरफ कोयले के लिए करीब 15,000 एकड़ जंगल काटने की कवायद चल रही है। इसमें से मप्र में सात खानों के लिए 838.03 हेक्टेयर (लगभग 2070 एकड़) वन क्षेत्रों पर कुल्हाड़ी चलेगी। इसका खुलासा हाल ही में लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में हुआ है। केंद्र सरकार ने कहा है कि कोल इंडिया लिमिटेड और इसकी सहायक कंपनियों ने 22 नई कोयला खानें खोलने की योजना बनाई है।

इनमें से 7 खदानें मप्र में खुलनी हैं। गौरतलब है कि मप्र सहित झारखंड, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा ऐसे राज्य हैं जो खनिज संपदा से परिपूर्ण हैं। सरकार इन्हीं चार राज्यों में 22 कोयला खानों के लिए 5966.84 हेक्टेयर (लगभग 14,744 एकड़) वन भूमि को उपायोग में लाया जाएगा। मप्र में सात खानों के लिए  838.03 हेक्टेयर वन भूमि का इस्तेमाल होगा। कोयला खनन के लिए जिन क्षेत्रों को चिन्हित किया गया है, वहां सघन वन क्षेत्र है।

मध्यप्रदेश की खदानों से सबसे अधिक कमाई

जून, 2020 में जिन 41 खदानों की नीलामी घोषणा की गई है, उनमें 12 को 2010 में नो-गो के रूप में वर्गीकृत किया गया था। मप्र में सिंगरौली कोलफील्ड में तीन में से दो ब्लॉकों को नो-गो के रूप में वर्गीकृत किया गया था। जिन्हें नीलाम किया गया है। मप्र की अधिकांश खदानें नो-गो क्षेत्र में आती हैं। अगर मप्र की खदानों की कमाई का आकलन करें तो कोल खनन की रॉयल्टी में सिंगरौली ने लक्ष्य से अधिक राजस्व अर्जित कर उमरिया, शहडोल समेत एक दर्जन जिलों को पीछे छोड़ दिया है। 

घने वन क्षेत्र हो जाएंगे बर्बाद

मप्र वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सरकार की कोयला खदानों को लेकर जो नीति है उससे घने वन क्षेत्र बर्बाद हो जाएंगे। मप्र के शहडोल जिले के इस कोलफील्ड में 110 ब्लॉक हैं, इनमें से 22 ब्लॉक 2010 की सूची के अनुसार नो-गो क्षेत्रों में हैं। जब 2015 में नो-गो सूची का नाम बदलकर अखंडित लिस्ट रखा गया, तो यह संख्या घटकर मात्र एक रह गई। मरवाटोला ब्लॉक को अखंडित क्षेत्र रूप में बरकरार रखा गया था क्योंकि यह बांधवगढ़ और अचनकमार बाघ अभयारण्यों के बीच स्थित है, जिसे भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून ने 2014 में चिन्हित किया था। लेकिन सरकार ने अब सोहागपुर कोलफील्ड में अंतिम बचे अखंडित ब्लॉक को भी तोडऩे का फैसला किया है और मरवाटोला को जून 2020 की नीलामी सूची में शामिल किया है। 

सागौन के पेड़ों की बलि

77,482 वर्ग किमी में फैला मप्र का वन क्षेत्र खनिज संपदा से परिपूर्ण है। मप्र में सर्वाधिक वन वृक्ष सागौन के हैं। उसके बाद दूसरे स्थान पर साल के वृक्ष हैं। जिन क्षेत्रों में खदानें खोली जानी है वहां सागौन और साल के वन हैं। अब प्रदेश में खुलने वाली सात कोयला खदानों के कारण सागौन और सान के पेड़ों की बलि दी जाएगी। मप्र से निकलने वाले कोयले से मप्र को कोई लाभ नहीं होता है। 

1962 करोड़ का लक्ष्य: चालू वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए 1962 करोड़ का लक्ष्य दिया गया। इसे 31 मार्च से पहले अर्जित कर सिंगरौली प्रदेश में पहली जगह बनाई है। कोरोनाकाल में भी कोल खनन से माहवार निर्धारित रॉयल्टी को विभाग ने प्राप्त किया है।

2015 के बाद मप्र में कोयला ब्लाकों को वन मंजूरी

वर्ष कंपनी  कोयला ब्लाक क्षेत्र (हेक्टेयर में)
2015 एसईसीएल  शहडोल 167
2015 एनसीएल  सिंगरौली 424
2017 एसईसीएल  शहडोल 77
2017 डब्ल्यूसीएल  छिंदवाड़ा 54
2017 डब्ल्यूसीएल  छिंदवाड़ा 386
2018 एनसीएल  सिंगरौली 468
2018 डब्ल्यूसीएल  बैतूल 201
2018 डब्ल्यूसीएल  बैतूल 108
2018 टीएचडीएस  सिंगरौली 1283
2018 एनसीएल  सिंगरौली 874
2018 एनसीएल  सिंगरौली 1195
2019 डब्ल्यूसीएल  बैतूल 101
2019 एनसीएल  सिंगरौली 467

इनका कहना है
देश की प्राथमिक ऊर्जा की लगभग 55 प्रतिशत खपत कोयले से पूरी होती है। सरकार की कोशिश है कि देश के कोल भंडार का अधिक से अधिक उपयोग हो सके। भारत की ऊर्जा जरूरतों का 80 फीसदा कोयला सीआईएल देता है, लेकिन नीतिगत वजहों से 2017-18 से कोयला उत्पादन के लक्ष्य में लगातार कटौती की गई। 
प्रहलाद जोशी, कोयला मंत्री 

जैव विविधता से भरे इलाकों में कोल-ब्लॉक्स की नीलामी और गौ और नो-गौ वर्गीकरण की अनदेखी से तीन-तरफा विनाश होगा। इसे रद्द किया जाना चाहिए। राजनीतिक रूप से मजबूत बिजली कंपनियों का असर दिख रहा है। प्रधानमंत्री को जलवायु परिवर्तन पर किए वादे को पूरा करना चाहिए।
जयराम रमेश, पूर्व केंद्रीय मंत्री 

मध्यप्रदेश में दो हजार एकड़ जंगल पर चलेगी कुल्हाड़ी

केंद्र ने निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने नियम किए दरकिनार

भोपाल, देश में एक तरफ सरकार वनीकरण और हरियाली को बढ़ावा देने की योजना पर काम कर रही है, वहीं दूसरी तरफ कोयले के लिए करीब 15,000 एकड़ जंगल काटने की कवायद चल रही है। इसमें से मप्र में सात खानों के लिए 838.03 हेक्टेयर (लगभग 2070 एकड़) वन क्षेत्रों पर कुल्हाड़ी चलेगी। इसका खुलासा हाल ही में लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में हुआ है। केंद्र सरकार ने कहा है कि कोल इंडिया लिमिटेड और इसकी सहायक कंपनियों ने 22 नई कोयला खानें खोलने की योजना बनाई है।

इनमें से 7 खदानें मप्र में खुलनी हैं। गौरतलब है कि मप्र सहित झारखंड, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा ऐसे राज्य हैं जो खनिज संपदा से परिपूर्ण हैं। सरकार इन्हीं चार राज्यों में 22 कोयला खानों के लिए 5966.84 हेक्टेयर (लगभग 14,744 एकड़) वन भूमि को उपायोग में लाया जाएगा। मप्र में सात खानों के लिए  838.03 हेक्टेयर वन भूमि का इस्तेमाल होगा। कोयला खनन के लिए जिन क्षेत्रों को चिन्हित किया गया है, वहां सघन वन क्षेत्र है।

मध्यप्रदेश की खदानों से सबसे अधिक कमाई

जून, 2020 में जिन 41 खदानों की नीलामी घोषणा की गई है, उनमें 12 को 2010 में नो-गो के रूप में वर्गीकृत किया गया था। मप्र में सिंगरौली कोलफील्ड में तीन में से दो ब्लॉकों को नो-गो के रूप में वर्गीकृत किया गया था। जिन्हें नीलाम किया गया है। मप्र की अधिकांश खदानें नो-गो क्षेत्र में आती हैं। अगर मप्र की खदानों की कमाई का आकलन करें तो कोल खनन की रॉयल्टी में सिंगरौली ने लक्ष्य से अधिक राजस्व अर्जित कर उमरिया, शहडोल समेत एक दर्जन जिलों को पीछे छोड़ दिया है। 

घने वन क्षेत्र हो जाएंगे बर्बाद

मप्र वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सरकार की कोयला खदानों को लेकर जो नीति है उससे घने वन क्षेत्र बर्बाद हो जाएंगे। मप्र के शहडोल जिले के इस कोलफील्ड में 110 ब्लॉक हैं, इनमें से 22 ब्लॉक 2010 की सूची के अनुसार नो-गो क्षेत्रों में हैं। जब 2015 में नो-गो सूची का नाम बदलकर अखंडित लिस्ट रखा गया, तो यह संख्या घटकर मात्र एक रह गई। मरवाटोला ब्लॉक को अखंडित क्षेत्र रूप में बरकरार रखा गया था क्योंकि यह बांधवगढ़ और अचनकमार बाघ अभयारण्यों के बीच स्थित है, जिसे भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून ने 2014 में चिन्हित किया था। लेकिन सरकार ने अब सोहागपुर कोलफील्ड में अंतिम बचे अखंडित ब्लॉक को भी तोडऩे का फैसला किया है और मरवाटोला को जून 2020 की नीलामी सूची में शामिल किया है। 

सागौन के पेड़ों की बलि

77,482 वर्ग किमी में फैला मप्र का वन क्षेत्र खनिज संपदा से परिपूर्ण है। मप्र में सर्वाधिक वन वृक्ष सागौन के हैं। उसके बाद दूसरे स्थान पर साल के वृक्ष हैं। जिन क्षेत्रों में खदानें खोली जानी है वहां सागौन और साल के वन हैं। अब प्रदेश में खुलने वाली सात कोयला खदानों के कारण सागौन और सान के पेड़ों की बलि दी जाएगी। मप्र से निकलने वाले कोयले से मप्र को कोई लाभ नहीं होता है। 

1962 करोड़ का लक्ष्य: चालू वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए 1962 करोड़ का लक्ष्य दिया गया। इसे 31 मार्च से पहले अर्जित कर सिंगरौली प्रदेश में पहली जगह बनाई है। कोरोनाकाल में भी कोल खनन से माहवार निर्धारित रॉयल्टी को विभाग ने प्राप्त किया है।

2015 के बाद मप्र में कोयला ब्लाकों को वन मंजूरी

वर्ष कंपनी  कोयला ब्लाक क्षेत्र (हेक्टेयर में)
2015 एसईसीएल  शहडोल 167
2015 एनसीएल  सिंगरौली 424
2017 एसईसीएल  शहडोल 77
2017 डब्ल्यूसीएल  छिंदवाड़ा 54
2017 डब्ल्यूसीएल  छिंदवाड़ा 386
2018 एनसीएल  सिंगरौली 468
2018 डब्ल्यूसीएल  बैतूल 201
2018 डब्ल्यूसीएल  बैतूल 108
2018 टीएचडीएस  सिंगरौली 1283
2018 एनसीएल  सिंगरौली 874
2018 एनसीएल  सिंगरौली 1195
2019 डब्ल्यूसीएल  बैतूल 101
2019 एनसीएल  सिंगरौली 467

इनका कहना है
देश की प्राथमिक ऊर्जा की लगभग 55 प्रतिशत खपत कोयले से पूरी होती है। सरकार की कोशिश है कि देश के कोल भंडार का अधिक से अधिक उपयोग हो सके। भारत की ऊर्जा जरूरतों का 80 फीसदा कोयला सीआईएल देता है, लेकिन नीतिगत वजहों से 2017-18 से कोयला उत्पादन के लक्ष्य में लगातार कटौती की गई। 
प्रहलाद जोशी, कोयला मंत्री 

जैव विविधता से भरे इलाकों में कोल-ब्लॉक्स की नीलामी और गौ और नो-गौ वर्गीकरण की अनदेखी से तीन-तरफा विनाश होगा। इसे रद्द किया जाना चाहिए। राजनीतिक रूप से मजबूत बिजली कंपनियों का असर दिख रहा है। प्रधानमंत्री को जलवायु परिवर्तन पर किए वादे को पूरा करना चाहिए।
जयराम रमेश, पूर्व केंद्रीय मंत्री 

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