अब भारत के समुद्री तटों पर सीवीड यानी समुद्री शैवाल की खेती तेजी से पकड़ रही है। जहां पहले लोग इसके बारे में ज्यादा जानते भी नहीं थे, वहीं अब इसकी खेती से कई लोग आर्थिक रूप से मजबूत हो रहे हैं। साथ ही, ये खेती पर्यावरण संरक्षण में भी मददगार साबित हो रही है।
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समुद्री किसानों की बदली किस्मत
ICAR-Central Marine Fisheries Research Institute (CMFRI) के डायरेक्टर डॉ. ग्रिन्सन जॉर्ज का कहना है कि दुनियाभर में सीवीड की डिमांड बढ़ रही है। रिसर्च के अनुसार, ये खेती काफी लाभकारी भी है, जिस वजह से यह आज एक आकर्षक बिज़नेस बनती जा रही है।
नई तकनीक से बढ़ी पैदावार और कमाई
CMFRI ने इंटीग्रेटेड मल्टी ट्रॉफिक एक्वाकल्चर (IMTA) नाम की नई तकनीक तैयार की है। इसकी मदद से समुद्री किसानों को पैदावार में इज़ाफा और आय में बढ़ोतरी देखने को मिली है। इस तकनीक से कप्पाफाइकस जैसी समुद्री शैवाल की खेती और आसान हो गई है।
भारत को मिला नया बिज़नेस मॉडल
डॉ. जॉर्ज के अनुसार, वैश्विक सीवीड मार्केट 2022 में लगभग 16.5 अरब डॉलर का था। भारत के पास लंबा समुद्री तट है, जिससे हमें इस मार्केट में बड़ी हिस्सेदारी लेने का मौका मिल सकता है।
मछुआरों को मिलेगा नया सहारा
सीवीड को ‘ब्लू गोल्ड’ कहा जा रहा है, क्योंकि ये परंपरागत मछुआरों के लिए आय का नया जरिया बन सकता है। इससे समुद्री इकोसिस्टम पर दबाव भी कम होगा।सीवीड का इस्तेमाल खाद्य, कॉस्मेटिक्स और दवा उद्योग में होता है। इसलिए, यदि स्थानीय मछुआरे या किसानों की कंपनियां बनाई जाएं, तो उन्हें अच्छा बाजार और सही दाम मिल सकता है।