रोहित सिंह नरवरिया, एन. के. बजाज
एस.एस. माहोर , मधु शिवहरे
श्रीराम शालिनी , कुणाल
तन्मय , मधुर क्षीरसागर एवं अंकिता
मादा प्रजनन रोग एवं प्रसूति विभाग , पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय , महू
बारिश के मौसम मे बीमार पशुओ द्वारा मिट्टी और पानी भी संक्रमित हो जाते है । जिसके संपर्क मे आने से स्वस्थ पशुओ के संक्रमित होने की सम्भावना बड़ जाती है। इस लिये रोगी पशुओ को स्वस्थ पशुओ से अलग रखें। पशुओ मे होने वाले प्रमुख रोग इस मौषम मे जैसे गलघोटू, लंगड़ा बुखार, खुरपका-मुँहपका, हैं। परजीवी रोगों में बबेसिओसिस, थैलेरिओसिस आदि प्रमुख रोग हैं।
पशुओ में होने वाले रोग जैसे खुरपका-मुँहपका, गलघोटू तथा लंगड़ा बुखार प्रमुखता बरसात के दिनों में गौवंश को प्रभावित करते है तथा कई बार पशुओ की जान भी चली जाती है। इन रोगों से बचाव हेतु बारिश से पहले टीकाकरण करना आवश्यक है ।
बारिश से पहले पशुओ में टीकाकरण
टीकाकरण के द्वारा करोड़ों पशुओ में विभिन्न संक्रामक रोगों से बचाव संभव है । पशुपालकों अपने पशुओ का उचित टीकाकरण पशु चिकित्सक की सलाह पर शुरुआत में ही करें तथा प्रति वर्ष पुन: टीकाकरण दोहराना चाहिए। गाय और भैंसों में खुरपका-मुँहपका, गलघोटू, लंगड़ा बुखार रोग आदि का टीका बारिश से पहले लगाया जाता है। भेड़ और बकरियों में भी मानसून की शुरुआत में पीपीआर और गलघोटू का टीका लगाया जाता है।
परजीवियों का प्रकोप
बारिश के मौसम में प्राय: परजीवियों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हो जाती हैं। जिससे पशुओ को शारीरिक व्याधियों का सामना करना पड़ता हैं। परजीवी प्राय: दो प्रकार के होते हैं –
अन्त: जीवी – जैसे पेट के कीड़े, कृमि आदि
बाह्य जीवी – चीचड़, मेंज, जूं आदि
लक्षण – रोगग्रसित पशु में सुस्ती, कमजोरी, खून की कमी एवं दूध में कमी देखने को मिलती है। पशु को पाचन प्रक्रिया में शिकायत रहती है जिससे पेट में दर्द और पतला गोबर आता है।
बचाव- बारिश के मौसम में पशुओ को तालाब के किनारे न लेकर जाएं। इसके साथ-साथ तालाब की किनारों वाली घास न खिलाएं, क्योंकि ये घास कीड़ों के लार्वा से ग्रस्त होती है । जो कि पेट में जाकर कीड़े बन जाते हैं और अनेक विकार उत्पन्न करते हैं।
उपचार- पशुचिकत्सक की सलाह से पशुओं को उनके वजन के अनुसार परजीवीनाशक दवा नियमित रूप से दो बार पिलायें।
खाज-खुजली: बारिश के मौसम में पशुओं में खाज-खुजली की शिकायत होती है इसका मुख्य कारण पशुशाला में गंदगी का होना है। इस रोग में पशु की त्वचा पर अत्यंत खुजलाहट होती है, जिसकी वजह से त्वचा मुरझा जाती है एवं पशु के खुजली करने पर त्वचा छिल जाती है और उस जगह के सारे बाल झड़ जाते हैं। कभी-कभी इन जगह पर जीवाणुओं के संक्रमण से दुर्गन्ध भी आती है।
चीचड़: बारिश के मौसम में अक्सर पशुओं में चीचड़ लग जाते हैं ये चीचड़ पशु का खून चूसते, जिससे खून की कमी हो जाती है तथा कई प्रकार के रोग भी फैलाते हैं जैसे बबेसिओसिस, थैलेरिओसिस आदि।
उपचार- पशुचिकित्सक की सलाह से कीटनाशक दवा को पशु के ऊपर लगायें तथा पशुशाला में भी छिड़काव करायें।