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देश का पहला गौ-अभ्यारण्य निजी हाथों में निजी हाथों में देने की तैयारी!

आरएसएस के ड्रीम प्रोजेक्ट से राज्य सरकार खींचेगी हाथ

लोकार्पण में ही सरकार ने लगाया था 5 साल का समय

अब गायों के खाने-पीने और इलाज की व्यवस्था नहीं

भोपाल, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के जिस ड्रीम प्रोजेक्ट की वजह से देशभर में प्रदेश का नाम चर्चित हो चुका है, उससे ही अब प्रदेश भाजपा की सरकार ने हाथ खींचने की तैयारी कर ली है। यह प्रोजेक्ट है सुसनेर का गौ अभ्यारण। इसका निर्माण बीते कार्यकाल में शिवराज सरकार ने ही संघ द्वारा की गई पहल पर कराया था। इसे प्रदेश का सबसे बड़ा गौ-अभ्यारण्य होने का दर्जा मिला है। संघ के लिए इस प्रोजेक्ट के महत्व को इससे ही समझा जा सकता है कि इस अभ्यारण्य के 24 दिसंबर 2012 को हुए भूमिपूजन में स्वयं संघ प्रमुख मोहन भागवत भी उपस्थित हुए थे। 

दरअसल, इस प्रोजेक्ट को लेकर शुरू से ही सरकार कितनी उदासीन रही है इससे ही समझा जा सकता है कि इसके पूरे होने में लगभग पांच साल का समय लगा दिया गया। इसकी वजह से इसका लोकार्पण 7 सितंबर 2017 को हो सका। इस कार्यक्रम में भी संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी भी शामिल हुए थे। अब लोकार्पण के तीन वर्ष बाद ही संघ की इस महत्वाकांक्षी योजना से सरकार ने पूरी तरह से हाथ खींचने की तैयारी करते हुए इसे निजी हाथों में देने की तैयारी कर ली है। प्रदेश में निजी गौ-शालाओं की दुर्दशा किसी से भी छिपी नहीं है, जिसकी वजह से  अब इस गौ-अभ्यारण्य के भविष्य पर सवाल उठना शुरू हो गए हैं।

निजी संचालकों द्वारा गौ-शालाओं में गौ-माता का संरक्षण और संवर्धन करने की जगह उनका दोहन किया जाता है। इनमें जब तक गाय दूध देती है, तब तक तो उसकी पूरी देखभाल की जाती है, लेकिन उसके बाद उसे उसके हाल पर छोड़ दिया जाता है, जिसकी वजह से उनकी अकाल मौत हो जाती है। खास बात यह है कि दूध बंद होते ही उन्हें भोजन पानी तक नहीं दिया जाता है। बीमार होने पर इलाज की बात तो सोची ही नहीं जाती है।

कैबिनेट से ली जाएगी मंजूरी

मप्र गौ-पालन एवं पशुधन संवर्धन बोर्ड द्वारा तैयार किए गए प्रस्ताव को कैबिनेट में पेश कर उस पर मंजूरी ली जाएगी। इसके लिए तीन निजी फर्मों ने दिलचस्पी दिखाई है। अब अंतिम निर्णय कैबिनेट को ही करना है।
अभ्यारण्य की खासियत 
सुसनेर के गौ-अभ्यारण्य में 6000 गाय रखने की क्षमता है। परिसर में खुला और प्राकृतिक वातावरण भी मौजूद है। इस अभ्यारण्य के निर्माण में उस समय 50 करोड़ रुपए की राशि खर्च की गई थी।  

सीएम दे चुके सहमति

मप्र गोपालन एवं पशुधन संवर्धन बोर्ड द्वारा तैयार किए गए निजीकरण के प्रस्ताव को लेकर पूर्व में एक बड़ी बैठक हो चुकी है। सीएम शिवराज सिंह चौहान द्वारा भी बोर्ड के प्रस्ताव पर सहमति दी जा चुकी है। 

1100 एकड़ में गौ-अभ्यारण्य

दरअसल, 1100 एकड़ क्षेत्र में फैले इस गौ-अभ्यारण्य को बदइंतजामी के वजह से सरकार द्वारा आत्मनिर्भर बनाने के प्रयासों को सफलता नहीं मिल सकी है।  

दम तोड़ रहीं गाय

अभ्यारण्य में बदइंतजामी का आलम यह है कि यहां लगातार गायों की मौत हो रही है। यही नहीं, यह अब तो पशुओं के बीमार होने और उन्हें ठीक से चारा और पानी नहीं मिलने की लगातार शिकायतें मिलने की वजह से बदनाम हो चुका है।  

देश का पहला गौ-अभ्यारण्य

सुसनेर के सालरिया गांव स्थित गो अभ्यारण्य देश का पहला गौ अभ्यारण्य है। सरकार ने 2012 में 472 हेक्टेयर क्षेत्र में कामधेनु गौ अभ्यारण्य अनुसंधान और उत्पादन केन्द्र का भूमिपूजन किया था। सितंबर 2017 में  इसका शुभारंभ किया गया था। 
वैज्ञानिक बनाते दवाइयां
प्रदेश के इस पहले अभ्यारण्य को लेकर प्रदेश सरकार ने बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाई थीं। यहां गौ-मूत्र से दवाइयां बनाने दावा किया गया था। गोबर से गैस बनाने के साथ कई प्रयोगों की शुरुआत होनी थी। यही नहीं गौ-मूत्र और गोबर पर रिसर्च भी शुरू की जानी थी। 

देश का पहला गौ-अभ्यारण्य निजी हाथों में निजी हाथों में देने की तैयारी!

आरएसएस के ड्रीम प्रोजेक्ट से राज्य सरकार खींचेगी हाथ

लोकार्पण में ही सरकार ने लगाया था 5 साल का समय

अब गायों के खाने-पीने और इलाज की व्यवस्था नहीं

भोपाल, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के जिस ड्रीम प्रोजेक्ट की वजह से देशभर में प्रदेश का नाम चर्चित हो चुका है, उससे ही अब प्रदेश भाजपा की सरकार ने हाथ खींचने की तैयारी कर ली है। यह प्रोजेक्ट है सुसनेर का गौ अभ्यारण। इसका निर्माण बीते कार्यकाल में शिवराज सरकार ने ही संघ द्वारा की गई पहल पर कराया था। इसे प्रदेश का सबसे बड़ा गौ-अभ्यारण्य होने का दर्जा मिला है। संघ के लिए इस प्रोजेक्ट के महत्व को इससे ही समझा जा सकता है कि इस अभ्यारण्य के 24 दिसंबर 2012 को हुए भूमिपूजन में स्वयं संघ प्रमुख मोहन भागवत भी उपस्थित हुए थे। 

दरअसल, इस प्रोजेक्ट को लेकर शुरू से ही सरकार कितनी उदासीन रही है इससे ही समझा जा सकता है कि इसके पूरे होने में लगभग पांच साल का समय लगा दिया गया। इसकी वजह से इसका लोकार्पण 7 सितंबर 2017 को हो सका। इस कार्यक्रम में भी संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी भी शामिल हुए थे। अब लोकार्पण के तीन वर्ष बाद ही संघ की इस महत्वाकांक्षी योजना से सरकार ने पूरी तरह से हाथ खींचने की तैयारी करते हुए इसे निजी हाथों में देने की तैयारी कर ली है। प्रदेश में निजी गौ-शालाओं की दुर्दशा किसी से भी छिपी नहीं है, जिसकी वजह से  अब इस गौ-अभ्यारण्य के भविष्य पर सवाल उठना शुरू हो गए हैं।

निजी संचालकों द्वारा गौ-शालाओं में गौ-माता का संरक्षण और संवर्धन करने की जगह उनका दोहन किया जाता है। इनमें जब तक गाय दूध देती है, तब तक तो उसकी पूरी देखभाल की जाती है, लेकिन उसके बाद उसे उसके हाल पर छोड़ दिया जाता है, जिसकी वजह से उनकी अकाल मौत हो जाती है। खास बात यह है कि दूध बंद होते ही उन्हें भोजन पानी तक नहीं दिया जाता है। बीमार होने पर इलाज की बात तो सोची ही नहीं जाती है।

कैबिनेट से ली जाएगी मंजूरी

मप्र गौ-पालन एवं पशुधन संवर्धन बोर्ड द्वारा तैयार किए गए प्रस्ताव को कैबिनेट में पेश कर उस पर मंजूरी ली जाएगी। इसके लिए तीन निजी फर्मों ने दिलचस्पी दिखाई है। अब अंतिम निर्णय कैबिनेट को ही करना है।
अभ्यारण्य की खासियत 
सुसनेर के गौ-अभ्यारण्य में 6000 गाय रखने की क्षमता है। परिसर में खुला और प्राकृतिक वातावरण भी मौजूद है। इस अभ्यारण्य के निर्माण में उस समय 50 करोड़ रुपए की राशि खर्च की गई थी।  

सीएम दे चुके सहमति

मप्र गोपालन एवं पशुधन संवर्धन बोर्ड द्वारा तैयार किए गए निजीकरण के प्रस्ताव को लेकर पूर्व में एक बड़ी बैठक हो चुकी है। सीएम शिवराज सिंह चौहान द्वारा भी बोर्ड के प्रस्ताव पर सहमति दी जा चुकी है। 

1100 एकड़ में गौ-अभ्यारण्य

दरअसल, 1100 एकड़ क्षेत्र में फैले इस गौ-अभ्यारण्य को बदइंतजामी के वजह से सरकार द्वारा आत्मनिर्भर बनाने के प्रयासों को सफलता नहीं मिल सकी है।  

दम तोड़ रहीं गाय

अभ्यारण्य में बदइंतजामी का आलम यह है कि यहां लगातार गायों की मौत हो रही है। यही नहीं, यह अब तो पशुओं के बीमार होने और उन्हें ठीक से चारा और पानी नहीं मिलने की लगातार शिकायतें मिलने की वजह से बदनाम हो चुका है।  

देश का पहला गौ-अभ्यारण्य

सुसनेर के सालरिया गांव स्थित गो अभ्यारण्य देश का पहला गौ अभ्यारण्य है। सरकार ने 2012 में 472 हेक्टेयर क्षेत्र में कामधेनु गौ अभ्यारण्य अनुसंधान और उत्पादन केन्द्र का भूमिपूजन किया था। सितंबर 2017 में  इसका शुभारंभ किया गया था। 
वैज्ञानिक बनाते दवाइयां
प्रदेश के इस पहले अभ्यारण्य को लेकर प्रदेश सरकार ने बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाई थीं। यहां गौ-मूत्र से दवाइयां बनाने दावा किया गया था। गोबर से गैस बनाने के साथ कई प्रयोगों की शुरुआत होनी थी। यही नहीं गौ-मूत्र और गोबर पर रिसर्च भी शुरू की जानी थी। 

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