डॉ. शिवम सिंह मेहरोत्रा
पशुपालन एवं डेयरी विभाग ,मध्यप्रदेश शासन
मानसून का मौसम जहाँ खेतों के लिए जीवनदायिनी वर्षा लाता है, वहीं यह पशुपालकों के लिए चिंता का विषय भी बन जाता है — खासकर जब आसमान में बिजली कड़कती है। आकाशीय बिजली एक स्वाभाविक परंतु अत्यंत घातक आपदा है। नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 2,000 से अधिक लोग और हजारों मवेशी आकाशीय बिजली की चपेट में आ जाते हैं। एक ही सेकंड में गिरने वाली बिजली की शक्ति लाखों वोल्ट की होती है, जो सीधे संपर्क में आने पर इंसान और जानवरों की तात्कालिक मृत्यु का कारण बन सकती है। ग्रामीण भारत में खासतौर से यह खतरा ज्यादा होता है क्योंकि अधिकांश पशुपालन खुले में या असुरक्षित ढांचों में किया जाता है।
इस संकट से बचने के लिए सबसे पहला कदम है जागरूकता और सतर्कता
जब भी बादल घिरने लगें, बिजली चमकने लगे या मौसम विभाग की चेतावनी मिले, तो मवेशियों को तुरंत खुले मैदानों, ऊँचे स्थानों, बड़े पेड़ों और बिजली के खंभों से दूर सुरक्षित आश्रयों में ले जाना चाहिए। कई बार किसान बारिश से बचाने के लिए जानवरों को पेड़ों के नीचे बांध देते हैं, लेकिन यह कदम जानलेवा हो सकता है, क्योंकि पेड़ बिजली का सामान्य लक्ष्य होते हैं। सुरक्षित गोशालाओं की छत पर लाइटनिंग अरेस्टर या अर्थिंग सिस्टम लगवाना एक कारगर उपाय है। यह उपकरण बिजली को छत से सीधे ज़मीन में भेज देता है, जिससे जानवरों और इंसानों की जान बचाई जा सकती है। इसके साथ ही पशु आश्रय स्थलों में अच्छी जल निकासी और पक्की छतों की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि पानी इकट्ठा न हो — क्योंकि पानी में खड़े जानवरों के लिए बिजली का असर कई गुना खतरनाक होता है।
उपाय कैसे और कहाँ से शुरू किए जाएं
स्थानीय संसाधनों और तकनीक का बेहतर उपयोग। आजकल कई मोबाइल ऐप्स जैसे “मेघदूत”, “मौसम मित्र” और “डैमिनी” किसानों को समय रहते मौसम और बिजली गिरने की चेतावनी देते हैं। ये ऐप्स बिल्कुल मुफ्त हैं और गांवों में इंटरनेट की न्यूनतम सुविधा पर भी चल सकते हैं। साथ ही, कई राज्य सरकारें और कृषि विज्ञान केंद्र पशुपालकों को सरकारी सब्सिडी पर बिजली रोधक यंत्र भी उपलब्ध करा रहे हैं। सामूहिक प्रयास के रूप में गाँव की सामूहिक गोशाला या पशुशाला में बिजली से बचाव के पूरे ढांचे खड़े किए जा सकते हैं। इसके लिए ग्राम पंचायत, पशुपालन विभाग और युवा स्वयंसेवकों की भागीदारी ज़रूरी है। बच्चों और गांववासियों को भी स्कूलों और चौपालों के ज़रिए यह बताया जाना चाहिए कि आकाशीय बिजली की आवाज़ या चमक को हल्के में न लें यह एक जानलेवा संकेत हो सकता है।
इसलिए इस मानसून में हमें सिर्फ अपने खेतों को नहीं, अपने पशुओं को भी सुरक्षा प्रदान करनी होगी। थोड़ी सी योजना, वैज्ञानिक सोच और सामूहिक जागरूकता के ज़रिए हम बड़ी त्रासदी को टाल सकते हैं। याद रखिए — पशु केवल हमारी आजीविका नहीं हैं, वे परिवार का हिस्सा हैं। उनकी सुरक्षा हमारा धर्म और दायित्व दोनों है।