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कृषि वैज्ञानिकों ने बताया गन्ने को कंडुआ रोग से कैसे बचाएं

डॉ शशिकान्त सिंह
बहराइच। आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र, नानपारा, बहराइच-।। के वैज्ञानिकों ने कृषकों के प्रक्षेत्र पर गन्ने में आ रही समस्या का निदान किया। केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ. के. एम. सिंह ने बताया कि पेड़ी गन्ने में हो रहा कंडुआ रोग कैंसर के समान है। अगर समय से इसकी रोकथाम नहीं की गई तो यह हवा के साथ अन्य पौधों में भी फैल जाता है। जिससे अगली पीढ़ी की फसल भी बर्बाद होने की आंशका होती है। संक्रमण को रोकने हेतु संक्रमित गन्ने के पौधों को जड़ सहित उखाड़कर एक झिल्ली में बंद करने के बाद सुबह आठ बजे से पहले ही मिट्टी में दबा देना चाहिए साथ ही रोग से प्रभावित पौधे को कभी जलाना नहीं चाहिए। खेत में जल जमाव ना होने दें और समय से निराई गुड़ाई कराये।

केंद्र की पौध संरक्षण वैज्ञानिक डॉ. हर्षिता ने बताया कि कंडुआ रोग लगने पर गन्ने की फसल में काले चाबुक के आकार की संरचना बनती है। जिसके अंदर काले रंग के चूर्ण जैसे फफूंदी के बीजाणु झिल्ली से ढके रहते हैं और तने के परिपक्व होने पर वह फट जाता है। जो हवा के माध्यम से खेत में फैलकर तीस से चालीस प्रतिशत तक नुकसान कर सकता है। इससे बचाव हेतु बीज शोधन अति आवश्यक है। खड़ी फसल में नियंत्रण हेतु एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोले 18.3% एस. सी. 1 मि. ली. अथवा प्रोपिकोनाजोल 25 ई.सी. 1 मि. ली. प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर जड़ से लेकर पलई तक में छिड़काव करें साथ ही खेत की मिट्टी को भी तर कर दें। डॉ अरुण कुमार ने बताया कि गन्ने मे खरपतवार प्रबंधन हेतु एट्राजिन 1 किलोग्राम या सिमेजिन 500 ग्राम या मेट्रीब्युजन 100 ग्राम प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करें।

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बहराइच। आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र, नानपारा, बहराइच-।। के वैज्ञानिकों ने कृषकों के प्रक्षेत्र पर गन्ने में आ रही समस्या का निदान किया। केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ. के. एम. सिंह ने बताया कि पेड़ी गन्ने में हो रहा कंडुआ रोग कैंसर के समान है। अगर समय से इसकी रोकथाम नहीं की गई तो यह हवा के साथ अन्य पौधों में भी फैल जाता है। जिससे अगली पीढ़ी की फसल भी बर्बाद होने की आंशका होती है। संक्रमण को रोकने हेतु संक्रमित गन्ने के पौधों को जड़ सहित उखाड़कर एक झिल्ली में बंद करने के बाद सुबह आठ बजे से पहले ही मिट्टी में दबा देना चाहिए साथ ही रोग से प्रभावित पौधे को कभी जलाना नहीं चाहिए। खेत में जल जमाव ना होने दें और समय से निराई गुड़ाई कराये।

केंद्र की पौध संरक्षण वैज्ञानिक डॉ. हर्षिता ने बताया कि कंडुआ रोग लगने पर गन्ने की फसल में काले चाबुक के आकार की संरचना बनती है। जिसके अंदर काले रंग के चूर्ण जैसे फफूंदी के बीजाणु झिल्ली से ढके रहते हैं और तने के परिपक्व होने पर वह फट जाता है। जो हवा के माध्यम से खेत में फैलकर तीस से चालीस प्रतिशत तक नुकसान कर सकता है। इससे बचाव हेतु बीज शोधन अति आवश्यक है। खड़ी फसल में नियंत्रण हेतु एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोले 18.3% एस. सी. 1 मि. ली. अथवा प्रोपिकोनाजोल 25 ई.सी. 1 मि. ली. प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर जड़ से लेकर पलई तक में छिड़काव करें साथ ही खेत की मिट्टी को भी तर कर दें। डॉ अरुण कुमार ने बताया कि गन्ने मे खरपतवार प्रबंधन हेतु एट्राजिन 1 किलोग्राम या सिमेजिन 500 ग्राम या मेट्रीब्युजन 100 ग्राम प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करें।

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