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किसानों को सीखनी होगी कम पानी में फसल उगाने की तकनीकी: डॉ. एसपी सिंह

लहार (भिंड)। बदलते जलवायु परिवर्तन में खेती किसानी मैं तकनीकी को अपनाकर किसान अधिक लाभ कमा सकते हैं। कम पानी की दशा में भी किसान तकनीकी को अपनाकर फसलों से अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। उक्त विचार कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा लहार क्षेत्र के गिरवासा गांव में आयोजित कृषक संगोष्ठी एवं जागरूकता कार्यक्रम के दौरान केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. एसपी सिंह द्वारा किसानों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए गए।

भूगर्भ जल में बहुत तेजी से गिरावट आ रही 
इस अवसर पर बोलते हुए डॉ. सिंह ने बताया कि भूगर्भ जल में बहुत तेजी से गिरावट आ रही है। इस कारण साल दर साल पानी नीचे खिसकता जा रहा है। वहीं वर्षा भी कम हो रही है। ऐसे में सिंचाई जल का समुचित प्रयोग करके पानी की 70 से 80 प्रतिशत तक बचत की जा सकती है। अधिकांश फसलों की जड़ें दो से ढाई इंच के भीतर ही जाती हैं इसलिए फसलों को इस गहराई में ही पानी की आवश्यकता होती है। परंतु किसान खेत में 8 इंच तक पानी भर देता है जिससे पानी व्यर्थ जाता है और फसल के भी काम नहीं आता है। किसान सिंचाई की तकनीकी अपना कर पानी की इस बर्बादी को रोक सकते हैं। इसलिए किसानों को चाहिए कि खेतों का समतलीकरण करें, बौछारी एवं ड्रिप सिंचाई पद्धति का पालन करें। खेत में उतना ही पानी भरे जितना पौधों को आवश्यक है।

कम पानी की दशा में मोटे अनाज की खेती बहुत लाभदायक 
डॉ. एसपी सिंह ने बताया कि कम पानी की दशा में मोटे अनाज की खेती बहुत लाभदायक होती है। मोटे अनाज भविष्य के अनाज हैं। इनकी खेती विषम जलवायु में, कम पानी की दशा में, ऊंची नीची जमीन पर कम लागत लगाकर आसानी से की जा सकती है। भिंड जिले की जलवायु व मिट्टी ज्वार बाजरा की खेती के लिए काफी अनुकूल भी है। उन्होंने बताया कि कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा निकरा परियोजना के अंतर्गत किसानों को जलवायु के अनुकूल खेती व पशुपालन की पद्धतियों के बारे में अवगत करा रहा है।

गिरवासा गांव को निकरा परियोजना के अंतर्गत चयनित कर गोद लिया 
अवगत कराना हैं कि कृषि विज्ञान केंद्र लहार द्वारा गिरवासा गांव को निकरा परियोजना के अंतर्गत चयनित कर गोद लिया गया है। जिसमें परियोजना से संबंधित सभी कार्य संचालित किए जाएंगे।

गेहूं व सरसों की कई प्रजातियों के बारे में किसानों को अवगत कराया
इस अवसर पर बोलते हुए केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आरपीएस तोमर ने बताया कि किसान जलवायु अनुकूल फसलों की किस्मो को चयनित करके बदलती हुई जलवायु परिस्थितियों में भी फसलों से अच्छा उत्पादन ले सकते हैं। सरसों और गेहूं की कई ऐसी प्रजातियां हैं जो तापमान के अचानक कम या ज्यादा होने की दशा में भी अच्छा उत्पादन देती हैं। इस अवसर पर उन्होंने गेहूं व सरसों की कई प्रजातियों के बारे में किसानों को अवगत कराया।

कृषक संगोष्ठी और जागरूकता कार्यक्रम के दौरान किसानों को विशेष रूप से मोटे अनाज के महत्व एवं लाभ के बारे में भी अवगत कराया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता गांव के प्रगतिशील कृषक राम खिलावन भूरिया तथा कार्यक्रम का संचालन रिटायर्ड प्रधानाचार्य डॉ. शिरोमणि सिंह द्वारा किया गया। इस अवसर पर प्रमुख रूप से निकरा परियोजना में एसआरएफ दीपेंद्र शर्मा, गांव के प्रगतिशील कृषक विनोद दुबे, जनपद पंचायत सदस्य राहुल सिंह तोमर, ब्रह्म प्रकाश पटेल आदि प्रमुख रूप से उपस्थित थे। कृषक संगोष्ठी में बड़ी संख्या में किसानों ने भाग लेकर जानकारी का लाभ उठाया गया।

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किसानों को सीखनी होगी कम पानी में फसल उगाने की तकनीकी: डॉ. एसपी सिंह

लहार (भिंड)। बदलते जलवायु परिवर्तन में खेती किसानी मैं तकनीकी को अपनाकर किसान अधिक लाभ कमा सकते हैं। कम पानी की दशा में भी किसान तकनीकी को अपनाकर फसलों से अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। उक्त विचार कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा लहार क्षेत्र के गिरवासा गांव में आयोजित कृषक संगोष्ठी एवं जागरूकता कार्यक्रम के दौरान केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. एसपी सिंह द्वारा किसानों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए गए।

भूगर्भ जल में बहुत तेजी से गिरावट आ रही 
इस अवसर पर बोलते हुए डॉ. सिंह ने बताया कि भूगर्भ जल में बहुत तेजी से गिरावट आ रही है। इस कारण साल दर साल पानी नीचे खिसकता जा रहा है। वहीं वर्षा भी कम हो रही है। ऐसे में सिंचाई जल का समुचित प्रयोग करके पानी की 70 से 80 प्रतिशत तक बचत की जा सकती है। अधिकांश फसलों की जड़ें दो से ढाई इंच के भीतर ही जाती हैं इसलिए फसलों को इस गहराई में ही पानी की आवश्यकता होती है। परंतु किसान खेत में 8 इंच तक पानी भर देता है जिससे पानी व्यर्थ जाता है और फसल के भी काम नहीं आता है। किसान सिंचाई की तकनीकी अपना कर पानी की इस बर्बादी को रोक सकते हैं। इसलिए किसानों को चाहिए कि खेतों का समतलीकरण करें, बौछारी एवं ड्रिप सिंचाई पद्धति का पालन करें। खेत में उतना ही पानी भरे जितना पौधों को आवश्यक है।

कम पानी की दशा में मोटे अनाज की खेती बहुत लाभदायक 
डॉ. एसपी सिंह ने बताया कि कम पानी की दशा में मोटे अनाज की खेती बहुत लाभदायक होती है। मोटे अनाज भविष्य के अनाज हैं। इनकी खेती विषम जलवायु में, कम पानी की दशा में, ऊंची नीची जमीन पर कम लागत लगाकर आसानी से की जा सकती है। भिंड जिले की जलवायु व मिट्टी ज्वार बाजरा की खेती के लिए काफी अनुकूल भी है। उन्होंने बताया कि कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा निकरा परियोजना के अंतर्गत किसानों को जलवायु के अनुकूल खेती व पशुपालन की पद्धतियों के बारे में अवगत करा रहा है।

गिरवासा गांव को निकरा परियोजना के अंतर्गत चयनित कर गोद लिया 
अवगत कराना हैं कि कृषि विज्ञान केंद्र लहार द्वारा गिरवासा गांव को निकरा परियोजना के अंतर्गत चयनित कर गोद लिया गया है। जिसमें परियोजना से संबंधित सभी कार्य संचालित किए जाएंगे।

गेहूं व सरसों की कई प्रजातियों के बारे में किसानों को अवगत कराया
इस अवसर पर बोलते हुए केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आरपीएस तोमर ने बताया कि किसान जलवायु अनुकूल फसलों की किस्मो को चयनित करके बदलती हुई जलवायु परिस्थितियों में भी फसलों से अच्छा उत्पादन ले सकते हैं। सरसों और गेहूं की कई ऐसी प्रजातियां हैं जो तापमान के अचानक कम या ज्यादा होने की दशा में भी अच्छा उत्पादन देती हैं। इस अवसर पर उन्होंने गेहूं व सरसों की कई प्रजातियों के बारे में किसानों को अवगत कराया।

कृषक संगोष्ठी और जागरूकता कार्यक्रम के दौरान किसानों को विशेष रूप से मोटे अनाज के महत्व एवं लाभ के बारे में भी अवगत कराया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता गांव के प्रगतिशील कृषक राम खिलावन भूरिया तथा कार्यक्रम का संचालन रिटायर्ड प्रधानाचार्य डॉ. शिरोमणि सिंह द्वारा किया गया। इस अवसर पर प्रमुख रूप से निकरा परियोजना में एसआरएफ दीपेंद्र शर्मा, गांव के प्रगतिशील कृषक विनोद दुबे, जनपद पंचायत सदस्य राहुल सिंह तोमर, ब्रह्म प्रकाश पटेल आदि प्रमुख रूप से उपस्थित थे। कृषक संगोष्ठी में बड़ी संख्या में किसानों ने भाग लेकर जानकारी का लाभ उठाया गया।

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