घाटमपुर का मॉनसून मंदिर: गुंबद से टपकने वाली बूंदे बताती है कैसा होगा मानसून?

कानपुर, कानपुर के घाटमपुर वाले मॉनसून मंदिर में गुंबद से टपकने वाली बूंदों ने तय कर दिया है इस बार का मानसून नॉर्मल रहेगा। इस मॉनसून मंदिर में भगवान जगन्नाथ की मूर्ति की पूजा होती है। हजारों साल पुराने इस मॉनसून मंदिर के बारे में मान्यता है कि गर्मी में जब चारों तरफ पानी का सूखा रहता है, जेठ बैसख में धरती तपा करती है उस दौरान मॉनसून से पहले इस मंदिर के गुंबद से जो बूंदे टपकती हैं उनके आकार से अंदाजा लग जाता है कि मॉनसून कैसा होगा। 

बूंदें आकार में छोटी तो मॉनसून नॉर्मल  
मंदिर के पुजारी केपी शुक्ला का कहना है कि इस बार मंदिर में टपकने वाली बूंदें आकार में छोटी हैं। इससे लगता है कि मॉनसून नॉर्मल होगा। अगर बूंदे मोटी होती हैं या उनका आकार बड़ा होता तो मॉनसून तेज होता और भारी बरसात होती। इस प्राचीन जगन्नाथ मंदिर की बनावट बताती है कि ये हजारों साल पुराना मंदिर है, लेकिन ठीक-ठीक कितने साल पुराना मंदिर है इसका आकलन किसी के पास नहीं है। 

मंदिर के आसपास कोई बस्ती  नहीं 
पुजारी केपी शुक्ला का परिवार पिछली सात पीढ़ियों से इस मंदिर की बागडोर संभाल रहा है। कानपुर में यह मंदिर घाटमपुर के भीतरगांव इलाके में बना हुआ है। भीतरगांव में मंदिर के आसपास कोई बस्ती भी नहीं है। गांव के लोगों का कहना है सालों पहले कई लोगों ने इस मंदिर के आसपास रहने की कोशिश की लेकिन भगवान ने ऐसा दंड दिया कि वह तुरंत मंदिर से दूर हो गए। 

जून की शुरुआत या मई के आखिरी महीने में टपकती हैं बूंदें
आसपास के लोगों का कहना है कि हर साल जब जून की शुरुआत होती है या मई का आखरी हफ्ता होता है, उस समय इस मंदिर की छत से बूंदें टपकने लगती हैं जबकि छत में कहीं भी कोई निशान नहीं है, कहीं कोई दरार नहीं है। मंदिर चारों तरफ से बंद है। मंदिर में एक ही दरवाजा है। गुंबद में कोई नाली और गड्ढा भी नहीं है जो माना जाए ऊपर पानी भरने से टपकता हो। 

भविष्यवाणी पर खेती करते हैं किसान
मंदिर के पुजारी इन बूंदों का आकार देखकर भविष्यवाणी करते हैं कि इस बार मॉनसून कैसा होगा। आसपास के लोग भी उनकी बात को पूरी तरह से मानते हैं। गांव के किसान पूरी शिद्दत से पुजारियों की भविष्यवाणी स्वीकार करते हैं और उसी हिसाब से मॉनसून का अंदाजा लगा कर अपनी फसलों की बुवाई भी करते हैं। 

पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है  मंदिर
गांव में बना यह मंदिर पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है जिसका यहां बोर्ड भी लगाया गया है। हालांकि अगर गांववालों की मानें तो सरकार की तरफ से इसके संरक्षण के कोई खास प्रयास दिखाई नहीं देते हैं। इस मंदिर तक जाने के लिए लोगों को पहले कानपुर आना पड़ता है। कानपुर से घाटमपुर, घाटमपुर से भीतरगांव जाना पड़ता है। भीतरगांव से ही एक सिंगल सड़क है जो बेहटा बुजुर्ग गांव तक जाती है। बुजुर्ग गांव के पीछे खेतों के बीच में ही जंगल में ही यह प्राचीन अद्भुत कला का मंदिर बना हुआ है।

सोशल मीडिया पर देखें खेती-किसानी और अपने आसपास की खबरें, क्लिक करें…

– देश-दुनिया तथा खेत-खलिहान, गांव और किसान के ताजा समाचार पढने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्म गूगल न्यूजगूगल न्यूज, फेसबुक, फेसबुक 1, फेसबुक 2,  टेलीग्राम,  टेलीग्राम 1, लिंकडिन, लिंकडिन 1, लिंकडिन 2टवीटर, टवीटर 1इंस्टाग्राम, इंस्टाग्राम 1कू ऐप से जुडें- और पाएं हर पल की अपडेट

Leave a Comment