babu panchal
अकरकरा की खेती मुख्य रूप से औषधीय पौधे के रूप में की जाती है। इसके पौधे की जड़ों का इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाइयों को बनाने में किये जाता है। अकरकरा के इस्तेमाल से कई तरह की बिमारियों से छुटकारा मिलता है। अकरकरा की खेती कम मेहनत और अधिक लाभ देने वाली पैदावार हैं। इसकी खेती कर किसान भाई काफी ज्यादा मुनाफ़ा कमा रहे हैं।
अकरकरा की खेती 6 से 8 महीने की होती है। इसके पौधों को विकास करने के लिए समशीतोष्ण जलवायु की जरूरत होती है। भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से मध्य भारत के राज्यों में की जाती है। जिनमे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे राज्य शामिल हैं। इसके पौधों पर तेज़ गर्मी या अधिक सर्दी का प्रभाव देखने को नही मिलता। इसका पौधा जमीन की सतह पर ही गोलाकार रूप में फैलता हैं। जिस पर पत्तियां छोटी छोटी आती है। इसकी खेती के लिए मिट्टी का पी।एच। मान सामान्य होना चाहिए।
सीहोर/बिल्किसगंज, कोरोना को लेकर जहां एक तरफ लोग डरे हुए हैं और रोजगार की कमी से परेशान हैं। वहीं कुछ लोगों ने सूझ-बूझ से अपनी आमदनी बढ़ा ली है। कोरोना में औषधी की मांग बढऩे से उनके दामों में उछाल आया है। साथ ही जिन फसलों से औषधी बनती है। उनके भावों में भी उछाल आया है। इसी को देखते हुए जिले के किसान धमेंद्र चतुर्वेदी ने औषधीय पौधों की फसल शुरू कर दी है। बिल्किसगंज के किसान धर्मेंद्र ने अपनी पांच एकड़ भूमि पर अश्वगंधा की बोवनी की है। वहीं साढ़े तीन एकड़ पर अगरकरा की बोवनी की है। इस औषधीय पौधे की जड़ सबसे महंगी बिकती है। हांलाकि इसकी जड़ से लेकर भूसा भी दो हजार रुपए क्विंटल बिकता है और बीज एक हजार रुपए किलो तक बिकता है। औषधीय पौधों की फसल में तीन गुना तक कमाई है। धर्मेंद्र बताते हैं कि इन दिनों खेती में बढ़ती लागत व कम आय को देखते हुए क्षेत्र के कई किसानों ने अपनी पारंपरिक खेती गेहूं और सोयाबीन की फसल को बोना छोड़ कर औषधीय पौधों की खेती करने की तरफ रुझान बढ़ा है। अगरकरा भी इन्हें में से एक है। जिसके दाम बहुत ज्यादा हैं और इसमें लागत बहुत कम आती है।
सात माह की फसल
देखा जाए तो पांरपरिक फसलों में अब लागत बढ़ती जा रही है। वहीं भाव भी ठीक नहीं मिलते। जिसके चलते क्षेत्र के किसान ने अगरकरा नामक औषधीय पौधे अपनी करीब तीन एकड़ कृषि भूमि में लगाई है। धर्मेंद्र ने बताया कि वे गोविंद पाटीदार से अगरकरा का बीज नीमच मंडी से खरीदकर लाए थे। जिसका भाव एक हजार रुपए किलो था। धर्मेंद्र करीब 30 किलो बीज लाए थे। जो साढ़े तीन एकड़ में लगाए थे। बोवनी नवंबर में की थी। फसल की उम्र छह से सात माह होती है। सात माह में फसल पक कर तैयार हो जाती है। पौधे से जड़ों का उत्पादन आठ से दस क्विंटल प्रति एकड़ होता है।
30 हजार रुपए क्विंटल
मंडी में इस औषधीय पौधे की जड़ों की कीमत आम दिनों में 25 से 30 हजार रुपए प्रति क्विंटल होती है, लेकिन कोरोना में आयुर्वेदिक दवाओं की मांग बढऩे से इसकी कीमत 35 से 40 हजार रुपए क्विंटल तक पहुंच गई है। वहीं पौधे में लगने वाले फूल भी दो से तीन हजार रुपए प्रति किलो बिकता है। जिससे किसान को अच्छा खासा मुनाफा मिलता है।
साढ़े छह लाख कुल आमदनी
किसान धर्मेंद्र बताते हैं कि वे 30 किलो बीज लाए थे। जिसे साढ़े तीन एकड़ में बोया। इस हिसाब से करीब साढ़े आठ हजार का बीज एक एकड़ में लगा। एक एकड़ में 10 हजार की खाद डाली थी। अब कटाई का खर्च 15 हजार एकड़ आएगा। कुल मिलाकर 35 हजार का खर्च एक एकड़ हुआ है। वहीं एक एकड़ में आठ से दस क्विंटल जड़ होगी। जिससे साढ़े तीन लाख की आमदनी होगी। चार क्विंटल भूसा होगा जो करीब आठ हजार का बिकेगा। तीन क्विंटल बीज का उत्पादन होगा। जिससे तीन लाख की आमदनी होगी। कुल आमदनी साढ़े छह लाख की होगी। एक एकड़ में 20 क्विंटल गेहूं होता है जिससे 40 हजार की आमदनी होती है।
अकरकरा के लिए उपयुक्त मिट्टी
अकरकरा की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली उपजाऊ भूमि की जरूरत होती है। जबकि जलभराव और भारी मिट्टी वाली भूमि में इसकी खेती नही की जा सकती। इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान 7 के आसपास होना चाहिए।
जलवायु और तापमान
अकरकरा की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु सबसे उपयुक्त होती हुई। भारत में इसकी खेती रबी की फसलों के साथ की जाती है। इसके पौधों को धूप की आवश्यकता ज्यादा होती है। इस कारण इसकी खेती छायादार जगहों में नही की जाती। हालांकि छायादार जगहों में इसका पौधा अच्छा विकास करता है। लेकिन छायादार जगहों में पौधे की जड़ें अच्छे से नही बनती जिसके लिए इसकी खेती की जाती है। इसकी खेती के लिए ज्यादा बारिश की जरूरत नही होती। अकरकरा के पौधों पर तेज़ सर्दी या गर्मी का असर देखने को नही मिलता। इसके पौधे सर्दियों में पड़ने वाले पाले को भी सहन कर लेते हैं।
इसके पौधों को शुरुआत में अंकुरित होने के लिए 20 से 25 डिग्री तक तापमान की जरूरत होती है। उसके बाद इसके पौधे न्यूनतम 15 और अधिकतम 30 तापमान पर अच्छे से विकास कर लेते हैं। इसके पौधों के पकने के दौरान तापमान 35 डिग्री के आसपास होना अच्छा होता है।
खेत की तैयारी
अकरकरा की खेती के खेत की मिट्टी भुरभुरी और नर्म होनी चाहिए। क्योंकि अकरकरा एक कंदवर्गीय फसल हैं। जिसके फल जमीन के अंदर विकास करते हैं। इसलिए इसकी खेती की तैयारी करते वक्त शुरुआत में खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर खेत को कुछ दिन के लिए खुला छोड़ दें। उसके बाद खेत में पुरानी गोबर की खाद उचित मात्र में डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें। खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में पानी चलाकर उसका पलेव कर दें। पलेव करने के कुछ दिन बाद जब जमीन की ऊपरी सतह सूखी हुई दिखाई दे तब खेत की फिर से जुताई कर देनी चाहिए।
पौध तैयार करना
अकरकरा के पौधे को बीज और पौधा दोनों रूप में की उगा सकते हैं। इसकी पौध भी नर्सरी में बीज के माध्यम से ही तैयार की जाती है। इसके बीजों को नर्सरी में पौध तैयार करने के लिए जमीन में उगाने पहले गोमूत्र से उपचारित करना चाहिए। ताकि पौधों को शुरूआती रोगों से बचाया जा सके। बीजों को उपचारित कर उन्हें प्रो-ट्रे में एक महीने पहले लगा दिया जाता है। बीज के तैयार होने के बाद उन्हें उखाड़कर खेत में तैयार की हुई मेड पर लगाया जाता है।
पौध लगाने का तरीका और टाइम
अकरकरा की पौध
अकरकरा की खेती बीज और पौध दोनों तरीके से की जाती है। बीज के रूप में इसकी खेती के लिए लगभग तीन किलो और पौध के रूप में इसकी खेती के लिए 2 किलो बीज काफी होता है। इसके बीज को खेत में उगाने से पहले उसे गोमूत्र से उपचारित कर लेना चाहिए। उपचारित किये बीज को खेत में लगाने के दौरान इसकी रोपाई मेड पर की जाती है। इसके लिए मेड से मेड की दूरी एक फिट के आसपास होनी चाहिए। जबकि मेड पर इसके पौधों को दोनों तरफ 15 सेंटीमीटर की दूरी पर दो से तीन सेंटीमीटर की गहराई में लगाना चाहिए।
पौध के रूप में इसके पौधों की रोपाई भी मेड पर ही की जाती है। मेड पर इसके पौधों को 15 से 20 सेंटीमीटर की दूरी पर ज़िग जैज़ तरीके से लगाना चाहिए। और पौधों की रोपाई के दौरान उन्हें चार से पाँच सेंटीमीटर की गहराई में लगाना चाहिए। पौध की रोपाई हमेशा शाम के वक्त करना अच्छा होता है। क्योंकि शाम के वक्त की जाने वाली रोपाई से पौधों का अंकुरण अच्छे से होता हैं।
अकरकरा की खेती के लिए बीज और पौधों की खेत में रोपाई अक्टूबर और नवम्बर माह के मध्य तक कर देनी चाहिए। अक्टूबर माह में बीजों की रोपाई करना अच्छा माना जाता है। इससे पौधों को विकास करने का टाइम अच्छे से मिल जाता है।
पौधों की सिंचाई
अकरकरा के पौधे को खेत में लगाने के तुरंत बाद उनकी सिंचाई कर देनी चाहिए। ताकि पौधे को अंकुरित होने में किसी परेशानी का सामना नही करना पड़े। अकरकरा के पौधों की पहली सिंचाई करने के बाद बीज के अंकुरित होने तक खेत में नमी की मात्रा बनाए रखने के लिए शुरुआत में हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए।
अकरकरा की खेती सर्दियों के मौसम में की जाती है। इस कारण इसके पौधों को अंकुरित होने के बाद कम सिंचाई की जरूरत होती है। इसके पौधों को पककर तैयार होने के लिए 5 से 6 सिंचाई की ही जरूरत होती है। इसके पौधों को अंकुरित होने के बाद 20 से 25 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए।
उर्वरक की मात्रा
अन्य फसलों की तरह इसके पौधों को भी उर्वरक की आवश्यकता होती है। इसकी खेती के लिए खेत की तैयारी के वक्त 12 से 15 गाडी पुरानी गोबर की खाद को प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में डालना चाहिए। गोबर की खाद की जगह किसान भाई किसी भी जैविक खाद का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसकी खेती में रासायनिक खाद का इस्तेमाल नही किया जाता। क्योंकि इसकी खेती औषधि पौधे के रूप में की जाती है। लेकिन फिर भी किसान भाई रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहता है तो प्रति एकड़ एक बोरा एन।पी।के। की मात्रा को खेत की आखिरी जुताई के वक्त छिड़क देना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
अकरकरा की खेती में शुरुआत में खरपतवार नियंत्रण काफी अहम होता है। इसकी खेती में खरपतवार नियंत्रण नीलाई गुड़ाई के माध्यम से ही करना चाहिए। क्योंकि रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण करने पर इसके कंदों की गुणवत्ता में कमी देखने को मिलती है। इसके पौधों की पहली गुड़ाई पौध रोपाई के लगभग 20 दिन बाद कर देनी चाहिए। जबकि बाकी की गुड़ाई पहली गुड़ाई के बाद 20 से 25 दिन के अंतराल में करनी चाहिए। इसके पौधों की तीन गुड़ाई काफी होती है।
रोग और उनकी रोकथाम
अकरकरा की खेती में कोई ख़ास रोग अभी तक देखने को नही मिला है। लेकिन जल भराव की वजह से इसके पौधों में सडन का रोग लग जाता है। जिससे इसकी पैदावार को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचता है। इस कारण इसके पौधों में जलभराव की स्थिति उत्पन्न ना होने दे।
पौधों की खुदाई और सफाई
अकरकरा के पौधे खेत में रोपाई के लगभग 5 से 6 महीने बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं। पूर्ण रूप से पके हुए पौधों की पत्तियां पीली दिखाई देने लगती है, और पौधा सूखने लगता है। इस दौरान इसकी खुदाई कर लेनी चाहिए। इसकी खुदाई गहरी मिट्टी उखाड़ने वाले हलों से करनी चाहिए। इसकी जड़ों की खुदाई करने से पहले पौधे पर बने बीज वाले डंठलों को तोड़कर एकत्रित कर लेना चाहिए। जिनसे प्रति एकड़ डेढ़ से दो क्विंटल तक बीज प्राप्त हो जाते हैं।
जड़ों को उखाड़ने के बाद उन्हें साफ़ कर पौधों से काटकर अलग कर लिया जाता है। जड़ों को अलग करने के बाद उन्हें दो से तीन दिन तक छायादार जगह या हल्की धूप में सूखाकर बोरो में भरकर बाज़ार में बेचा दिया जाता है। इसकी सिंगल जड़ वाली फसल का बाज़ार भाव ज्यादा मिलता है।
पैदावार और लाभ
अकरकरा की प्रति एकड़ फसल से एक बार में डेढ़ से दो क्विंटल तक बीज और 8 से 10 क्विंटल तक जड़ें प्राप्त होती है। इसकी जड़ों का बाज़ार भाव 20 हज़ार रूपये प्रति क्विंटल के आसपास पाया जाता है। और इसके बीज का बाज़ार भाव 10 हज़ार रूपये प्रति क्विंटल के आसपास पाया जाता है। जिससे किसान भाई एक बार में एक एकड़ से दो लाख तक की कमाई आसानी से कर सकते हैं।