विदिशा, कृष्ण गोशाला समिति बरखेड़ा पठारी द्वारा गोशाला प्रांगण में दुर्लभ एवं अत्यंत औषधीय महत्व वाले गुग्गल के पौधों का रोपण किया गया। यह पौधा अत्यधिक दोहन एवं कटाव के कारण आईयूसीएन की रेड लिस्ट में घोर संकटग्रस्त प्रजाति के रूप में अंकित है।
कार्यक्रम में उपस्थित पशु चिकित्सक डॉ. पल्लव साहनी ने गुग्गल के महत्व, संरक्षण और औषधीय उपयोग के संबंध में विस्तृत जानकारी प्रदान की। उन्होंने बताया कि यदि इस प्रजाति को संरक्षित नहीं किया गया तो निकट भविष्य में इसके विलुप्त होने का खतरा गहरा सकता है। डॉ. साहनी द्वारा गुग्गल के कुछ पौधे भी उपलब्ध कराए गए, जिन्हें गोशाला प्रांगण में रोपित किया गया।
पौधारोपण कार्यक्रम में गोशाला समिति अध्यक्ष राजकुमार यादव, सरपंच प्रतिनिधि देवेंद्र यादव, ग्राम पंचायत सचिव मनोज रिछारिया सहित समिति के गणमान्य सदस्य उपस्थित रहे। सभी ने मिलकर पौधों का रोपण किया और गुग्गल संरक्षण का संकल्प लिया।
गुग्गल का औषधीय महत्व
गुग्गल से प्राप्त गोंद-राल का उपयोग गठिया,मोटापा,कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण,हृदय रोग सहित अनेक बीमारियों के उपचार में किया जाता है महर्षि चरक ने गुग्गल को श्रेष्ठ औषधियों में स्थान दिया है।
अथर्ववेद में इसकी धूनी को धूपन द्रव्य कहा गया है, जिसमें रोग विनाशी गुण वर्णित हैं। एक स्वस्थ गुग्गल का पेड़ लगभग 5 वर्ष बाद राल देने लगता है, और 6वें वर्ष से प्रति पेड़ लगभग 1 किलोग्राम राल वार्षिक रूप से प्राप्त हो सकती है।
वर्तमान बाजार में गुग्गल राल का मूल्य लगभग दो हजार रुपए प्रति किलोग्राम है। यह पौधा पानी की कम आवश्यकता वाला होता है एवं बंजर, पथरीली भूमि पर भी आसानी से विकसित हो जाता है।गोशाला समिति का यह प्रयास न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है बल्कि संकटग्रस्त औषधीय प्रजाति को बचाने की दिशा में भी एक प्रेरणादायी पहल है।




